कुदरत ही कुदरत !!
कुदरत द्वारा आकारीत चैतन्यता की अनुभूति करना हमारा मानवीय दृष्टिकोण होना चाहिए। ईश्वर ने हमें इस संसार में अनुभूत संचरण का साक्षात्कार करने एवं उनकी योजना में ही मस्त रह कर कर्तव्य पालन करते जीवन जीने भेजा है। उन्होंने अविश्रान्त रुप से आनंद की अनुभूति के साथ अनुस्यूत रहना सिखाया है। विश्व की झड चेतन दुनिया पारस्परिक अनुबंध में ही निर्भर है। इस अवलंबन मे से ही हमारे वैयक्तिक संबंध निर्माण होते हैं। इसमें कोई अनुचितता प्रवेश करेगी तो व्यक्तिगत विफलता प्रकट होगी। कभी कभी असत्यता का भी सफल होना संभव है लेकिन कुदरत की नजरों से बच गए येसा नहीं। आज खुबसूरत हैं ये हमें लगता है लेकिन हमें कुदरत की खुबसूरती वाली सुबह चाहिए।
उनकी सजावट में कभी कमीं नहीं हो सकती। कुदरत की बनाई पुष्प-वन-उपवनों की दुनिया में कोई कमी है क्या ? एक किटक की भी अहमियत कुदरत ने कायम की है। हमें मनुष्य के रुप में बुद्धि और भाषिक जीवन दिया है इसका मतलब ये हरगिज़ नहीं है कि हम सब पर अधिकारत्व स्थापित करें।
कुदरत कुदरत ही है। विश्व क़ो आनंदमयी अवस्था में देखना ही उसका मकसद होगा। तभी तो हमें दील को छू लेने वालीं बातें या बर्ताव एक अलग अहसास करवाती है। ये ह्रदय की परिभाषा ही कुदरत की सनातन परिभाषा त़ो नहीं…!!
शायद कुदरत आनंदविश्व की सहेलगाही के लिए हमें प्राकृतिक संवेदना व्यक्त करने को प्रेरित करता हैं। ईश्वर की पसंदीदा राह में चलने के प्रयास में आपका डॉ.ब्रजेशकुमार 💐😊