ईश्वर की सृष्टि में सहज कर्म ही सराहनीय हैं।
बच्चे सहजता के सर्वोच्च शिखर हैं। 🧚♂️🧚♀️🧚
हम बच्चों को ईश्वर का रुप मानते हैं। जब वो ही बच्चा बडा होता हैं तो दुनिया की सारी बुराई झेलने वाला बन जाता हैं। बच्चों की सहज हरकतों से हम खुश हो जाते हैं। क्योंकि बच्चों का वर्तन सहज हैं। उनकी आंखो में, उनके चहरें पे मासूमियत छलकती हैं। दुनिया में कोई भी व्यक्ति येसा नहीं होगा जिनको बच्चें पसंद नहीं होते। अगर ऐसा होता हैं तो वो इन्सान नहीं होगा।
आनंदविश्व की परिकल्पना में हम पर भी सहज़ रूप से ईश्वर की अमीदृष्टी बनीं रहें इस प्रकार की जीवनरीति प्राप्त करने की चाहत रखनी हैं। और ये हमारी कल्याणक चाहत ईश्वर ही पूरी करेंगे ऐसा दृढ़संकल्प पूरी श्रद्धापूर्वक हैं।
ईश्वर के सामने बुद्धि का प्रदर्शन नहीं आत्मा का मन का शुद्ध भाव रखना हैं। ईश्वर की दी हुर्ई बुद्धि से मानव-पशु-पक्षी एवं समग्र जीवसृष्टि का कुछ न कुछ अच्छी निर्मिति में प्रयोग करना होगा। बालक सहजता से इस सृष्टि को समजने का प्रयत्न करता हैं। अपनी जिज्ञासा को सहज प्रगट करता हैं। वो फल-फूल,नदी-पत्थर,सूरज-चांद, सजीव-निर्जीव सब को एकात्मता से आत्मसात करने का प्रयत्न करता है। ओर उसकी ये अद्भुत चेष्ठा उसको बुद्धिमान बनाती हैं।
हम बुद्धि की श्रेष्ठता का स्विकार करते हैं। लेकिन बुद्धिमानी की श्रेष्ठता के उपर आत्मा की शुद्धता की बात भी अनादिकाल से होती रही हैं। हमें अपने कर्म से श्रेष्ठत्व को स्थापित करने का प्रयत्न करना हैं। आज पूरा विश्व आनंद ओर शांति की खोज कर रहा हैं।
आनंदविश्व की आश में हम सब को निकलना हैं। हमारी ये सहलगाह आनंदमार्ग से भरी हो ऐसा हम सब मानते हैं। आइए कुछ शब्दों को पढकर और एकांत में इस बात पर विचार करके…!! निकल पडे हमारी आनंद विश्व की सहेलगाह पे….!! आपके साथ आपका डॉ.ब्रजेशकुमार 😁 💕
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