Regularization is the habit of the Nature.
प्रकृति पुरानी,उसकी नियमित आदतें भी पुरानी…!!
Friends…recall. the spring is come….A timetable of GOD.
आनंदविश्व विश्व सहेलगाह में फिर एक बार वसंत के शब्द साज सजाता हूं, क्योकि वसंत मुझे बेशुमार पसंद हैं। मैंने कह दिया लेकिन आपका भी यही मानना होगा.. सच हैं ना ??
धरातल पर अदृश्य ईश्वर की दृश्यमान घटनाएँ निरंतर होती रहती हैं। सारी पृथ्वी में प्रकृति संवृत भू-भाग ज्यादा हैं। इसलिए सहज ही कुदरत की ऋतु बदलाव परंपरा वहाँ जल्द नजर आती हैं। वसंत में तरूवर का नयापन सहज हमारी दृष्टि में आता हैं। इसके कारण सबसे पहले वसंत हमें वहाँ दिखाई पडती हैं। पलाशवन में तो वसंत बेशुमार खिलती भी हैं साथ खेलती भी हैं। मानो रंगो का उत्सव मनाया जाता हो ऐसा माहोल….!
प्रकृति में ज़्यादातर वृक्षों में बसंत की प्रगल्भता परिवृत होती हैं। पानखर में पेडों के पत्ते गिर जाते हैं। वर्षा की ऋतु में पेडों का पोषण जबरदस्त तरीके से हुआ हो, सर्दी की मौसम में भी पेडों के पत्तों की ज्यादातर चिंता नहीं होती। लेकिन गर्मी की मौसम में नयें पन्नों को वृक्ष का पोषण करना सहज हो जाए..! नव पल्लवित वनस्पति सूरज के तेज किरनों के सामने अपना अस्तित्व संजोए दमदार खडी रहें। कुदरत ने कितना ख्याल रखा हैं ना..!
महान ईश्वर की ये बेशुमार प्रेम करने की दृश्य चेष्टा हैं। सृजन का जिम्मेदार कदम, ईश्वर की सक्षमता प्रकृति को भी सक्षमता बक्षती हैं। अपना अस्तित्व टिकाए जीना हमें ईश्वर ही सिखाते हैं। वसंत इसका दमदार उदाहरण हैं। अदृश्य नियंता की दृश्य चेतना का संचार वसंत की बहार हैं, यही वसंत की भीतरी पहचान हैं।
मदहोशी-महसूसी का ये कुसुमोत्सव हम विचारशील मनुष्य के लिए तो सबसे महत्वपूर्ण हैं। हम तो हृदय की धडकनो से, संवेदना की अनुभूति से और पारस्परिक सख्यता की आकांक्षा से भरें हुए हैं। हमारे साथ हमारा पंथी-साथी भाषिक संवेदन प्रकट करने वाला हैं। वसंत में तो प्रगटत्व का सरीयाम उत्सव निर्माण होना चाहिए। ये मात्र कल्पना नहीं हैं, सिद्धांत हैं। हमें स्वीकार नहीं करना ये अलग बात हैं। लेकिन ह्रदय कभी जूठ नहीं बोलेगा…पूछ लेना एक बार !!
बस ज्यादा हो गया। रुकता हूँ, वसंत की अपनी-अपनी मदहोशी के लिए महसूसी लिए।
Your thoughtbird… Dr.Brijeshkumar Chandrarav
Gandhinagar, Gujarat.
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Good
🙌✨