Until Heart to Heart.
मन से मन का बंधन सबसे उपर…!
आखिर एक दौड बाकी हैं। सफर बडी सुहानी हैं। रास्ते गुमनाम भी हैं, सुनसान भी हैं। कहीं लगता हैं जाना है, कहीं नहीं जाने का मन..! मनुष्य के हृदय तक पहुंचना भी एक सफर तो हैं। सारें रास्ते खुले हैं, और बंध भी सभी हैं। उलझन सी मति हैं, लडखडाती गति हैं…फिर भी सफर सुहानी तो हैं ही !!
बहुत बडे संसार में हमशक्ल तो कईं मिल जायेंगे, मगर एक हमसफर का मिलना थोडा कठिन सा हैं। नामुमकिन नहीं लेकिन मुमकिन का रास्ता भी बड़ा लंबा हैं। जन्म से हम सब प्राप्ति से जुड़े हैं। देखना- जानना- समझना फिर अपने आप को प्रकट करना। सब्र की सारी कसौटियों को पार करना। क्या प्राप्त करना हैं, ये बार-बार भूलते रहना। फिर न झुकते हुए भीड में घुसने का प्रयास करना। क्या हैं ये सब…? दौड है भाई दौड…! अनादिकाल से प्रतिबद्धता की ये सफर न थमी हैं न बंध हुई हैं। निरंतरता से मजबूत नाता बनाए हुए…सफर कभी रुकती ही नहीं।
क्या महंगा क्या किफ़ायत ? प्राप्ति की हमारी-आपकी दौड किस दिशा की रफ्तार पकड़ पाएगी…पता ही नहीं। लेकिन शांति व आनंद का मार्ग तो “रिश्ते-संबंध” की खुबसूरती पर निर्भर करते हैं। कईं शब्दों का झमेला लिए समझने का प्रयास करते हैं, यहाँ शब्दों की बात नहीं करनी चाहिए। मन तो शब्दों से ऊपर हैं। मन की गति को शब्द क्या पकड पाएग़े। मनुष्यत्व की सबसे बेहतरीन रचना संबंधों से होती हैं। क्योंकि संबंध शब्दों के मोहताज नहीं होते। उन संबंधों की दौड हम लगाना ही चूक जाते हैं। वस्तु और वैयक्तिकता के बीच की हमारी दौडे हैं। संबंध की दौड सबसे बेहतरिन होती हैं। संबंध का घटना ही मन की जीत से हैं।
सबसे बडा बंधन मन का बंधन हैं। दिलों को अतूट तरीके से झोडने वाला बंधन !! मुझे लगता हैं ये दिलों को झोडने वाली दौड ही जीवन का मूलमंत्र हैं। ईश्वर इस दौड के खिलाडीओं को निंदा से दूर हटाकर निर्भीकता- समर्पिता और प्रेममयता से संवृत कर देते हैं। मनुष्य के जीवनोत्कर्ष की बाधाएं ऐसे ही टल जाती हैं। ये जादुई शक्ति हैं, संबंध निभाने की दौड में…! आ रही हैं न समझमें…एक अनूठी दौड !!
आनंदविश्व सहेलगाह में आज बस इतनी ही दौड…क्योंकि शब्दविश्व के आगे भी एक ओर जहां हैं। उस जहां की बात ही अनूठी हैं। चलों चलें उस बहतरीन डगर पे…जहां मन का विजय हैं !!
મન: ઈવમ બંધનમ મોક્ષદાયિકમ…..
Thanks 👏 Name please ?
Nice
Very nice 👍