Art of Life..a real luxury of Life.

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Contentment is natural wealth luxury is artificial poverty.
Socrates.


जीवन से संसार और संसार में जीवन !! व्यक्ति और समष्टि..! हमसब की गति बस, इन्हीं दो शब्दों के अनुसरण में ही हैं। वैयक्तिक सुंदरता, श्रेष्ठता को स्थापित करने की दौड हैं। इस खूबसूरत खेल (जीवन) का मैदान सारी सृष्टि हैं। सारे संसार में हमारें करतब कैसे हैं? हम किससे बेहतर हैं ? हम ही सबसे ऊपर हैं, ओर पीछे हैं तो इन दिशाओं की खोज में निकलें की वो हमें सबसे बेहतर बनाएं।


The art of luxury

महान फिलसूफ सोक्रेटिस ने बडी लाजवाब बात बताई हैं। “संतोष ही हमारा प्राकृतिक धन हैं, विलासिता कृत्रिम गरीबी हैं।” जीवन जीने के मूलभूत सिद्धांत को पकड पाना सबसे बडी सफलता हैं। मनुष्यत्व उलझकर पिडित हो रहा है। विश्व में समस्याएं दिन-प्रतिदिन बढ रही हैं। सुझाव बहुत है लेकिन सुलझाया नहीं जा रहा हैं। खाने-पीने से लेकर रहन-सहन, शिक्षा-अशिक्षा, शोध-संशोधन, मेरा-तेरा, अपना पराया सब में असमंजसता संवृत हैं, व्याप्त हैं। इससे बचने के उपाय कईं हैं,लेकिन उस उपाय को बताने वालों के उपर भी सवाल हैं। बस, इन्हीं सोच से जीवन का गुजारा ही संभव हैं। आनंदपूर्वक के जीवन को लेकर प्रश्ननार्थ ही रहेंग़े !!

बात संतोष की हैं लेकिन संतोष होगा तो नई उम्मीदों का क्या ?
“असंतोषा: श्रीयं मूलं।” महाभारत के सभापर्व का एक श्लोक ये कहता हैं। असंतोष होगा तो ही लक्ष्मी प्राप्त होगी। अब करना क्या ? कौन सही भला ? वैचारिक मतभेदों की उलझनें हैं लेकिन मुझे मेरी आवाज, मेरी भीतरी आवाज को सुनना होगा। या तो प्रकृतिगत सिद्धांत को मानना होगा। मैं जो समझता हूं ,थोडा प्रयास करता हूं। इस बात को लेकर….जिसकी प्राप्ति से अन्य का कुछ भला है क्या ? या फिर समष्टि का हित उसमें है क्या ? उन सभी चीजों की प्राप्ति में मेरा असंतोष होना चाहिए। मेरी वैयक्तिक मेहनत से मुझ से ज्यादा अन्य का भी लाभ हैं तो मेरा रास्ता सही हैं। ब्लोग सही जा रहा हैं ? मेरी वैयक्तिक मांग में संतुष्टि आवश्यक हैं। “मैं” की कल्पना तो हमारी हैं ही नहीं। हमारें प्राचीन वेदों की भाषा “हम” हैं। हमारा कल्याण, समष्टि का हित ओर मनुष्य मात्र के उत्कर्ष की बात वेदों में हैं। हमें पुरुषार्थ की बातों में श्रद्धा हैं। धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष की प्राप्ति हमारी सांस्कृतिक सोच रही हैं। इसीलिए भारतवर्ष की ” वसुधैवकुटुंबकम् ” की बात सर्व स्वीकार्य हैं। स्वीकार्यता की बात को लेकर हम कितने सही गलत ये हमें तय करना हैं। क्योंकि हम भारतवर्ष की संतान हैं।

मुझे अब विलासिता की कृत्रिम गरीबी के बारे में कुछ लिखना पडेगा क्या ? शायद बिल्कुल नहीं..आपको संतोष की बेशुमार धन्यता समज में आ ही गई होगी। प्राकृतिक धन संतोष हैं, तो असंतोष की अद्भुत तत्परता भी समझ में आ ही जाती हैं। हमारी उम्मीदों की उडान इन्हीं रास्तों से गुजरें तो “आनंदविश्व सहेलगाह ” बडी खुबसूरत बनी रहें। चलों-चलें, ईश्वरीय अमीरी की खोज में…उस डगर पे चलने को, दौड ने को…! चलों, शुरु करें…असंतोष की आनंदयात्रा…!

आपका ThoughtBird.🐣

Dr.Brijeshkumar Chandrarav ✍️

Gandhinagar,Gujarat.

INDIA

dr.brij59@gmail.com

09428312234.

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One thought on “Art of Life..a real luxury of Life.

  1. Very nice