Love is an endless mystery..!
for it has nothing else to explain it….Rabindranath Tagore.
प्रेम एक अनंत रहस्य हैं, उसे समझाने के लिए और कुछ नहीं !!
थोडी-सी पंक्तियाँ…
( विपोदे मोरे रक्षा क’रो, ए न’हे मोर प्रार्थना…बंगाली भाषा)
मेरी रक्षा करो विपत्ति में, यह मेरी प्रार्थना नहीं हैं;
मुझे नहीं हो भय विपत्ति में, मेरी चाह यही हैं।
दुःख-ताप में व्यथित चित्त को
यदि आश्वासन दे न सको तो,
विजय प्रयास कर सकूँ दु:ख में मेरी चाह यही हैं।
मुझे सहारा मिले न कोई तो मेरा बल टूट न जाए,
यदि दुनिया में क्षति ही क्षति हो,
(और) वंचना आए आगे,
मन मेरा रह पाये अक्षय, मेरी चाह यही हैं।
ये कहने की ताकत कोई सामान्य व्यक्ति में नहीं होती। ईश्वर के साथ प्रकृति के साथ का एकत्व संबंध इन शब्दों को प्रेरित कर सके। कविता का कोई विवरण नहीं करता क्योंकी आपको सहज ही समज में आ जाएगा। एक बार नहीं दो बार पढ़िए…भीतर ताजगी से भर जाएगा।
रविन्द्रनाथ मात्र कवि नहीं थे। एक शुद्ध ह्रदय के धनी थे। प्रकृति की संवेदना को समझने वाले अनुभावक थे। ईश्वर की प्रेम दुनिया में डूबकी लगाए अपना जीवन प्रफुल्लितता से जीने वाले “जीवनराम” थे। ओर इसी कारण रवीन्द्रनाथ जी जो कहते हैं, वो दमवाला लगता हैं। उनकी बातें हमें सैद्धांतिक लगती हैं। ईश्वर और प्रकृति की लीलामय कल्पना जब एक मुकाम पर पहुंच जाए…तब जो कुछ बातें कहीं जायेगी वो सिद्धांत या सिद्धांत से करीबी हो सकती हैं।
प्रेम एक अनंत रहस्य हैं, उसके बारें में कुछ कहने के लिए सचमुच कोई समर्थ नहीं हैं। प्रेम अनुभूति हैं, प्रेम अद्वैत हैं। प्रेम जीवन के अमूलख श्वास की तरह है। प्रेम आनन्द है, प्रेम करीबी की मर्यादा हैं। प्रेम आसमान को छू लेने वाला उत्तुंग शिखर हैं। दोस्तों, ये सब प्रेम शब्दावलियां कैसी लगी !? मुझे पता हैं…बहुत ही सुंदर..! हमारे भीतर में छीपे हुए प्रेम को स्पर्श करने वाली लाजवाब बातें…! मगर ये रहस्य प्रेम करने वालों का अपना होता हैं। उसमें कोई बनावट नहीं होती। थोडे से शब्द ठीक हैं, लेकिन प्रेम सबका अपना होता हैं। उसकी अनुभूति अपनी, उसकी भाषा भी अपनी खुद की होती हैं। मैं भला प्रेम कैसे लिख सकता हूँ।
प्रेम के रहस्य को अपने भीतर पालते हुए..!
जीवन की खुबसूरती अपने-अपने रंग से ढंग से,
अनुभूत करें।
शुभकामनाएँ for प्राकृतिक संबंध के गहराई की Understanding.