Dedication for the nation.

3
0

परम पूज्य गुरुजी यानी….राष्ट्राय स्वाहा !

माधव सदाशिव गोलवलकर राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के यज्ञपुरुष!

संघ स्थापक पू. डॉक्टर साहब और पू.गुरुजी की पहेली मुलाकात लिख रहा हूँ। संवाद में छीपे संवेदन को देखे।

डॉ हेडगेवारज़ी ने गुरुजी से पूछा; क्या कर रहे हैं ?
उत्तर मिला- साधना !
काहे के लिए ?
मोक्ष के लिए !
“बड़ा अच्छा विचार है, पर एक बात बताइए कि आप मोक्ष का सुख प्राप्त करने की तैयारी में हैं, यदि तुरंत आपके सामने हजारों लोग नर्क के कुंड में गिर रहे हो तब आप क्या करेंग़े ?”
श्रीगुरुजी ने उतर दिया, ” पहेले मैं नर्क में जाने वाले को निकालूँगा, बाद में मोक्ष की बात करूंगा।”
डॉ. हेडगेवारजी ने कहा कि ठीक यही स्थिति भारतवर्ष की हो रही हैं, सैकड़ों लोग स्वार्थ के नर्क कुंड में गिर रहे हैं, और भारतमाता की चिंता के लिए कोई तैयार नहीं हैं ! ऐेसे में मुझे लगता है कि आप मोक्ष को छोड़ दीजिए !”उसके बाद उनकी अखंड साधना चली ! तैंतीस वर्ष में तैंतीस बार भारतवर्ष की परिक्रमा कर उस महापुरुष ने आदि शंकराचार्यजी के प्रति अपनी श्रद्धांजलि अर्पित की।


१९ फरवरी १९०६ को नागपुर के पास रामटेक में उनका जन्म हुआ था। ५ जून १९७३ को उन्होंने इस संसार से विदा ली। ६७ बरस की आयु में समग्र भारत को एक चेतना से संवृत किया। एम.एससी, एल.एल.बी तक की पढाई साथ ही बनारस हिन्दु यूनिवर्सिटी का प्राध्यापक का दायित्व। जूलॉजी में उनकी ज्यादा दिलचस्पी थी। शायद इसलिए वो मनुष्य के भीतर की संवेदना को स्पर्श करते रहें हैं। प्राणीमात्र के प्रति संवेदनशील होना देवत्व का प्रतिक हैं। “मैं नहीं तू ही” का मंत्र जीने वाले हमारे गुरुजी।


पूज्य डाक्टरजी की श्रद्धा के मूर्त स्वरुप हैं गुरुजी। ओर ये कर्म दायित्व तो राष्ट्र का था। आनेवाली पीढ़ी की बेहतर के लिए था। आर.एस.एस -संघ का विस्तार बढ़ा गुरुजी के निरंतर प्रवास से, संघ की दृष्टीवान व्यापकता बढ़ी, संघ का स्वीकार होने लगा। संगठन एक सुग्रथित स्वरूप को प्राप्त करता हैं…राष्ट्र-हिन्दुत्व की अद्भुत परिकल्पनाएं आकारित होने लगती हैं। संगठन को पू.गुरुजी की आत्मिक व आध्यात्मिक दृष्टि मिलती रही। साथ ही पू.डॉक्टरजी का पथदर्शक आशीर्वाद भी..!

एक जीवन को कितना व्यस्त बनाकर ओर राष्ट्रोन्नोति की सोच में हरदम लगा देना। अपने शरीर की परवाह किए बिना कर्क रोग की पीडा तक का सफर..! क्या मिलने वाला था ? एकमात्र सत्कर्म और भारत मां की आबादी !! मनुष्य जीवन को योग्य दिशा देने का परितोष ! एक विश्वास की पूर्ति का अहसास! तेरा तुझको अर्पण.. आखिर इस देश की मिट्टी में ही गुलमिल जाना है, इस प्राणतत्व रुप सोच को जीवनभर निभाते पू.गुरुजी और समर्पण की राह पर चलने वाले लाखों हेडगेवार तैयार करने का ‘कर्तव्यधर्म’ पू. गुरुजी ने बजाया है।

ईश्वर का महान कालक्रम हैं। संसार की उन्नति के लिए वे कोई न कोई समर्पण की मिसाल खडी करते हैं। उन्हीं की मर्जी पू.डॉक्टरजी और पू.गुरुजी…साथ आज भी उस क्रम को आगे बढ़ाने वाले राष्ट्रसमर्पित निर्मिति के वाहको को शत शत वंदना !



“त्येन त्यक्तेन भूंजिथा” की वेद वाणी के अनुसरण में सदा-सदा प्रवृत्त रहने वाले लाखों स्वयंसेवको को नमन। समयदान से एक संगठन की ताकत के लिए प्रवृत्त सभी राष्ट्रजीवि लोगों को भी वंदन !



आपका ThoughtBird. 🐣
Dr.Brijeshkumar Chandrarav
Gandhinagar, Gujarat.
INDIA.
dr.dr.brij59@gmail.com
09428312234

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *