हिन्दु नववर्ष का प्रारंभ..!
ब्रह्मा की सृष्टि रचना का पहला दिन।
चैत्र सुद एकम को हिन्दुओं का पुरातन नववर्ष- प्रारंभिक दिन माना गया हैं। इस प्रतिपदा तिथि को जम्मू-कश्मीर में ‘नवरेह’,पंजाबमें ‘वैशाखी’, महाराष्ट्र में ‘गुडीपडवा’ सिंध में ‘चैतीचंड’ केरल में ‘विशु’ असम में ‘रोंगली बिहू’ आंध्र में यह पर्व ‘उगादि’ नाम से मनाया जाता हैं। उगादि का अर्थ होता है, युग का प्रारंभ।
एक ओर तथ्य विक्रम संवत की चैत्र शुक्ला की पहली तिथि से दुर्गा व्रत पूजन यानि नवरात्रि का प्रारंभ होता हैं। ईस पवित्र दिवस पर राजा रामचंद्र का राज्याभिषेक हुआ था। साथ ही युधिष्ठिरजी का राज तिलक भी ईसी दिन हुआ था। सिख परंपरा के द्वितीय गुरु अंगददेव को जन्म भी इसी दिन हुआ था। ऐसी कई घटना के कारण व भौगोलिक परिवर्तन के कारण भी इस दिन का महत्व बढ जाता है।
चैत्र सुद एकम से झुडे कईं प्रसंग पर अलग-अलग अध्याय लिखा जा सकता हैं। लेकिन आज मैं भारत के पराधीन समय की एक उत्कृष्ट घटना का जिक्र करता हूं। सभी घटनाओं का अपना-अपना मूल्य होता हैं। कोई घटना इतिहास बनकर युगों तक अमर बन जाती हैं। ऐसी एक घटना १ अप्रैल १८८९ के दिन घटित होती हैं। पिता बलिराम और माता रेवतीबाई के निमित्त एक प्रतिभासंपन्न बालक केशव का जन्म हुआ। संयोग से इसी दिन चैत्री शुक्ल एकम थी, हिन्दु वर्ष प्रतिपदा।
महाराष्ट्र के नागपुर में हमारे केशव बडे होने लगे। परतंत्रता की बेडीओं में
देश बंधा हुआ था। देश में क्रान्ति की ज्वालाएँ उठती रहती थी। गुलामी की त्रस्तता सब में राष्ट्रवाद प्रदीप्त कर रही थी। नागपुर की गलीओं में पल रहें केशव के मन में राष्ट्र और राष्ट्र की गूंज गूंज रही थी। बचपन में बच्चें खिलौने से खेलते हैं। ये बालक अंग्रेज़ों के खिलाफ की आवाज बनता हैं। केशव स्कूली जीवन में ही रानी विक्टोरिया के जन्म दिन मनाए जाने पर अपना विरोध प्रकट करते हें। वंदे मातरम् का जयघोष उनके मन मस्तिष्क पर तांडव मचाता रहता था।
केशव के लिए साधारण परिवार एक पीडा थी। लेकिन भावनाएँ हिन्दुओं के लिए कुछ करने की थी। सेवा से राष्ट्रमाता का गौरव करना उनका स्वप्न बन गए थे। हिन्दुओं के संगठन की आवश्यकता भी लगती थी। ईस दौरान वे कलकत्ता पढाई के लिए गये थे। वहां उनका मिलाप बंगाल के कुछ क्रान्तिकारियों से हुआ। केशव डाक्टरी की पढाई के वहां गए थे। लेकिन समाज की दुर्दशा देखकर उनको लगा की आज समाज के इलाज की आवश्यकता हैं। वे कार्य कुशल थे, अच्छे संगठक थे। नेतृत्व की क्षमता ने उन्हें हिन्दू महासभा बंगाल प्रदेश के उपाध्यक्ष बना दिया।
डॉक्टर केशव की बहुधा प्रवृत्तिओं पर राष्ट्रभाव ने कब्ज़ा कर लिया था। पढाई के बाद वे नागपुर आते हैं। उस समय कॉंग्रेस की प्रवृत्तिओं का भी भाग बने। महात्मा गांधीजी के अहिंसक असहयोग आंदोलन और सविनय अवज्ञा र्आंदोलनों में भाग लिया। खिलाफ़त आंदोलन की आलोचना के कारण गिरफ्तार हुए बाद १९२२ में जेलसे छूटे। ईसी समय विनायक दामोदर सावरकर के पत्र हिन्दुत्व का संस्करण निकला था। जिसमें इनका भी योगदान रहा।
उस समय के डॉ.साहब के उद्बोधन के कुछ शब्द : ” संघ के जन्म काल समय की परिस्थिति बडी विचित्र सी थी, हिन्दुओं का हिन्दुस्थान कहना उस समय पागलपन समझा जाता था और किसी संगठन को हिन्दू संगठन कहना देश द्रोह तक घोषित कर दिया जाता था।”(राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ तत्व और व्यवहार पृष्ठ ६४)
राष्ट्र के प्रति अप्रतिम श्रद्धा के कारण १९२५ की विजयादशमी के दिन एक संगठन आकारित होता हैं। “आ सिंधु-सिंधु पर्यन्ता, यस्य भारत भूमिका। पितृभू-पुण्यभू भुश्चेव सा वै हिंदू रीति स्मृता।” अत: इसका अर्थ “भारत के वह सभी लोग हिन्दू हैं जो इस देश को पितृभूमि-पुण्यभूमि मानते हैं।” बस आज इतना ही…संघ एक बृहद विषय हैं। संघ के संस्थापक डॉक्टरजी तो उससे भी बडा व्यक्तित्व हैं। थोडे शब्दों में उसे बयां नहीं किया जा सकता।
आज के पवित्र अवसर पर परम पूज्य केशव बलिराम हेडगेवारज़ी को प्रणाम !!
साथ ही माँ दुर्गा के प्रकटरूप नौ दिनों की बधाई-बधाई !!
आपका ThoughtBird. 🐣
Dr.Brijeshkumar Chandrarav.
Gandhinagar,Gujarat.
INDIA.
dr.brij59@gmail.com
9428312234