Creatures are beautiful part of the world.
Rainy season is born time of creatures and incects.
सृष्टि में एक माहौल ऐसा भी बनता हैं जिसमें जीवों का पैदा होना बढ जाता हैं। ईट्स अ “बीग बॉर्न टाईम”। बारिश सबसे बड़ी क्रियेटिव सिजन हैं। सृष्टिमें सबसे बेहतरीन घटना वर्षाकाल हैं। ईश्वर बडे सृजन कर्ता हैं। सबका अनुभव है हम बारिश से तृप्त होते हैं। वर्षा की मोसम भले ही थोड़ी-बहुत खतरनाक हैं फिर भी सबको पसंद हैं। मुझे इस ब्लोग के लिखते समय ख्याल आया हम ईश्वर को शायद आसमान में इसी कारण ढूंढते हैं। हताशा-निराशा में हम उपर देखकर प्रार्थना करते हैं। इसमें कोई धर्म का बाद नहीं हैं। बस ये सबकी सहज हरकत हैं।
ईश्वर को हम परवद्दीगार कहते हैं। इसका मतलब ही सबका पालन करनेवाला ऐसा होता हैं। वर्षाऋतु पालन करने की ईश्वर की जबरदस्त चेष्टा हैं। पानी की बातें बहुत हो सकती हैं, मगर आज बर्षाकाल में जो असंख्य प्रकार के जीवों का जन्म होता हैं, उसके बारें में थोडा-बहुत सोचेंगे। मैं एक विचार रखता हूं..बाद में ईसे किस हद तक ले जाना हैं, वो आप पर निर्भर हैं। मैं ईस धरातल का एक छोटा-सा इन्सेक्ट की तरह हूं। एक ‘विचारबीज’ रख रहा हूँ।
वर्षाकाल में एकदम से कईं जीवों का प्रकट होना सहज संभव हो जाता हैं।भांति-भांति के रंगो लिए, विचित्र प्रकार के पंख लिए, आवाज की भिन्नता से भरे ओर शरीर की नाजुकता लिए कईं प्रकार के जीव धरती पर छा जाते हैं। कईं इसमें जहरीले भी होते हैं। छोटे मगर दंशीले और कईं तो ख़ूबसूरती से भरें होते हैं। ये संसार की बडी लाजवाब घटना हैं। ज्यादातर किटक जीवन क्षणिक होता हैं। ईश्वर की अकल्प्य योजना के तहत किटकों का क्षणजिवी अवतार होता हैं। थोडे ही समय में वे अपने जलवें बिखेर के मृतप्राय हो जाते हैं। ईस घटना के हम साक्षी हैं। सभी को इनका आकर्षण हुआ होगा। सभी का बचपन तो इस घटना से काफी अचंभित होता रहा हैं। रात के सन्नाटे में ईन जीव-जंतुओं की कर्कश आवाज के हम सब साक्षी रहे हैं।
आज विचार आया सारें किटकों का सामूहिक बर्थ इसी ऋतु में क्यों होता होगा ? बडा ही सोचने लायक मुद्दा हैं। ईश्वर की योजना कैसी होगी ? लेकिन मुझे एक बात ध्यान में आई हैं। शायद धरती पर बारिश के बाद बोनाई का काम शुरु होता हैं। इसी कारण मिट्टी में छीपे कईं जीवों का बाहर आना होता होगा। थोडे दिन की धरती की सैर..! बारिश के कारण अन्य जीवों को खुराक सहज मिल जाए इसी कारण…या फिर अपनी छोटी-सी जिंदगी का छोटा-सा कर्तव्य निभाने..!
अहस्तानि सहस्तानामपदानि चतुष्पदाम्।
फल्गुणी तत्र महतां जीवो जीवस्य जीवनम् ॥ (श्रीमद्भागवत १.१३.४७)
“जिनके हाथ नहीं हैं, वे हाथ वालों के शिकार हैं; जिनके पैर नहीं हैं, वे चार पैरों वाले लोगों के शिकार हैं। कमजोर लोग ही बलवानों का आहार हैं और सामान्य नियम यह है कि एक जीव दूसरे जीव का भोजन है।”
शायद प्रकृति की कोई अनवरत योजना का अंश है, या कुदरत का कोई उद्देश्य..! जो भी हो लेकिन बर्षाकाल में ये हो रहा हैं। उससे लाभ-अलाभ क्या हैं वो भी हम कैसे जान पायेंगे ? बस, हमें अचंभित होते रहना या अपनी छोटी-सी कल्पना को विचारपंख देना। इससे ज्यादा हम क्या कर सकते हैं। बस साक्षीभाव से अधिक !!
आपका ThoughtBird.🐣
Dr.Brijeshkumar Chandrarav
Gandhinagar, Gujarat.
INDIA
dr.brij59@gmail.com
+919428312234
akdam jinu jinu juo cho Dr.saheb
goog thought
Good artical Dr
Apni lekhan yatra khub khub saras che. ek sundar mukame jarur pahochase….Ashirvad.