Once your life becomes an expression of joy..!
you will no longer be in conflict with anyone.
ब्लोग के टाईटल में मैने ‘ग्रेट प्लेजर’ लिखा हैं। महान आनंद की प्राप्ति के लिए संसार के कईं चरित्रों ने प्रयास किए हैं। कोई ध्यान-योग-हठयोग-साधना-पूजा-व्रतजप से आनंद की प्राप्ति खोजता हैं। कोई कर्मयोग से कोई धर्म से आनंद प्राप्ति के प्रयास करता हैं। सभी मार्ग अपनी-अपनी रूची के अनुसार ठीक हैं। कोई भी मार्ग ऊँचा या नीचा नहीं हैं। सभी मार्ग पर आनंद प्राप्त होगा। युगो से चली आ रही मानवीय सभ्यता में कईं पहलू पर विचार हुआ हैं। अनेक दूरंदेशीओं ने मार्गदर्शन भी किया हैं। नयें नयें प्रकल्प अस्तित्व में आए हैं। संसार में नई-नई विचारधाराएं अस्तित्व में आई हैं।
मैं समजता हूँ कि सभी प्रकल्प की अपनी-अपनी फिलसूफी हैं। सबके ढांचेगत आचार है, विचार हैं। सबकी कार्य प्रणाली हैं, पद्धति हैं। सबकी धाराए मनुष्य के कल्याण के लिए बहती हैं। मनुष्य जीवन को बेहतर बनाने की प्रक्रियाएं चल रही हैं। मनुष्य जीवन को आनंद देने की या आनंद में रहने की कुंजी देने के प्रयास चारों ओर चल रहे हैं। सही है मनुष्य को आनंदित होना हैं। सभी भौतिक चीजवस्तुओं का आविष्कार मनुष्य के आनंद के लिए हुआ। फिर भी कुछ त्रुटियाँ रह जाती हैं। जीवन के आनंद की खोज जारी रहती हैं। ये मनुष्य जीवन की सबसे बडी यात्रा हैं। आनंद को खोजने की यात्रा..!
आज भारत में सद्गुरु वासुदेव जग्गी की स्पष्टतावाली विचारधारा चर्चा में हैं। भारत के बहार विदेश में भी उनके जीवन संबंधित विचार को पुष्टी मिल रही हैं। जीव-जगत-पर्यावरण का तालमेल कैसे प्रमाण भूत हो उसकी पक्रियाएं उनके कोईम्बतुर आश्रम में चलती हैं। वो जल-जंगल को बचाने की बात रखते हैं। नदी और मिट्टी के बचाव मैं उन्होंने मार्गदर्शी यात्राएँ की हैं। मानवमन की जागृति के लिए सद्गुरु आवश्यक कदम उठा रहे हैं। चिरकालिन ज्ञान परंपरा एवं तंत्र विज्ञान के जरिए मानवमन को आनंदित व शांत करने का प्रयास भी कर रहे हैं।
उनका एक सुंदर क्वोट हैं :”एक बार जब आपका जीवन आपके आनंद की अभिव्यक्ति बन जाता हैं, तो आप किसी के साथ संघर्ष में नहीं रहेंगे।”
हम भारतीय सभ्यता को चिरकालिन मानते है। कभी न तूटने वाली सभ्यता मानते हैं। दूसरों को स्वीकार करनेवाली हमारी सभ्यता हैं। किटक से लेकर कदावरों की फिकर करने वाले है हम..! प्रकृति के पूजक है हम..! सनातन है हम…ऐसी कई बातों का गर्व करने वाले है हम भारतवासी..! सद्गुरु हमारी सनातन बात रख रहें हैं। जैसी हैं वैसी, उसे रीयल तरीके से रखते हैं। उसमें कोई अपनी खुद की फिलोसोफी नहीं डालते। इसी कारण सब स्वीकार रहें हैं। भारतवर्ष में ऐसे कई महापुरुष भी हुए हैं। उनका स्वीकार होना सहज हुआ हैं।
ये संघर्ष की बात सुनकर- पढकर मैं बडा विचलित हुआ। जीवन की उन्नति के लिए संघर्ष करना भी पडता हैं। वो संघर्ष वैयक्तिक हैं। अपनी प्राप्ति के लिए हैं। उसमें तो अपना भीतरी आनंद छीपा हैं।फिर समझ में आया, संघर्ष मतलब दूसरों के साथ किया हुआ स्वार्थवश व्यवहार। उसमें आनंद नही हैं, स्पर्धा हैं। उसमें ईर्षा हैं, मलिन ईरादें भी हो सकते हैं। क्योंकि वहां “सबसे बहतर मैं हूं” की लडाई हैं। उसमें जो संघर्षे है वो कभी आनंद नहीं दे सकता। संघर्ष से कभी आनंद नहीं मिल सकता। जैसे “शांति के लिए युद्ध या युद्ध के बाद शांति !?”
फिर भी कहने का मन हो रहा हैं। दूसरों की कमियों निकाल कर या दूसरों को हल्का कहकर कैसा आनंद मिल सकता हैं ? बड़ी सोच बडी ही होती हैं। मेरे या कोई ओर के कहने से सनातन सभ्यता के विचार बदला नहीं करते..! कोई हवा चलती भी हैं, फिर हवा के झोंके से बदल जाती हैं। उसे आप जो कहें !!
आपका ThoughtBird.🐣
Dr.Brijeshkumar Chandrarav.
Gandhinagar. Gujarat.
INDIA
dr.brij59@gmail.com
+ 91 9428312234
सही बात है कर्मयोगी के लिए संघर्ष नहीं है।
कुछ लोगों ने समाज को कर्मवादी बना दिया है। बड़े गजब का विषय अपने छेड़ दिया।
आपका आभार प्रकट करता हूं..लेकिन आप comment में अपना नाम लिखे। दूसरों को पता भी चले लोगों को रीयल बात पसंद आती है।
आपका ब्रजेश 🐣
बहोत खुबसूरत बात है । सनातन को सत सत नमन। हमारी संस्कृति हमारी विरासत है । प्रकृति ही जीवन है । (अनिल राठौड़ कच्छ गुजरात )
👌👌The Right note for all humans. Valuable thinking. nice thought bird !!!!