The difference between stupidity and intelligence, is that intelligence has a limit.
Albert Einstein.
हां, अल्बर्ट आइंस्टीन को यह कहने का श्रेय दिया जाता है, “मूर्खता और प्रतिभा के बीच अंतर यह है कि प्रतिभा की अपनी सीमाएं होती हैं”। एकदम सही बात हैं और अल्बर्ट आइंस्टीन को हक भी है ये कहने का। उन्होंने अपनी प्रतिभा के लिए तपस्या की हैं। अपनी जरुरतों का ख्याल छोडकर। उनमें एक प्रतिबद्ध लगन थी। जीवन की सही मूल्यता को वो पहचान गए थे। फिर उनको किसी ओर को पहचानने की जरुरत ही न पड़ी।
अल्बर्ट आइंस्टीन के बारें में थोडी इंफॉर्मेशन जी इन्डिया डॉटकॉम पर उपलब्ध हैं। उनके संशोधन के बारें में काफी-कुछ जानकारी प्राप्त हो सकती हैं। आज सोशल साइट्स पर्याप्त हैं। फिर भी थोडा कुछ..!
अल्बर्ट आइंस्टीन की उम्र चार या पांच साल रही होगी, जब पिता ने उनको एक छोटा सा कंपास दिखाया। आइंस्टीन कंपास के कांटो को इधर-उधर जाता देख सोच में पड़ गए। वह कौन सी अदृश्य ताकत है जो कांटे को इधर से उधर ले जा रही है ? जिज्ञासावश हुआ ये सवाल आइंस्टीन के लिए पूरी जिंदगी का सफर बन गया…! ब्रह्मांड को समझना आइंस्टीन के लिए ‘अमर पहेली’ बन गया !
वह सूर्य ग्रहण 29 मई, 1919 को पड़ा था। जैसे ही आसमान से बादल छंटे, 17वीं सदी से चली आ रही आइजैक न्यूटन की गुरुत्वाकर्षण की परिभाषा किसी काम की नहीं रही थी। सूर्य और चंद्रमा एक सीध में आए और ग्रहण लगा। तब तक जितने तारों की जानकारी थी, उनकी तस्वीरों ने उस बात की पुष्टि कर दी थी जिसकी भविष्यवाणी आइंस्टीन ‘सापेक्षता के सामान्य सिद्धांत’ में कर चुके थे। वह भविष्यवाणी थी- ‘सूर्य का गुरुत्वाकर्षण एक लेंस की तरह कार्य करता है और दूर स्थित तारों से आने वाले प्रकाश को विक्षेपित (deflect) कर देता है, जिससे वे नई जगहों पर दिखाई देने लगते हैं।’
अगले कुछ महीनों के भीतर अल्बर्ट आइंस्टीन का नाम दुनियाभर में फैल गया। 7 नवंबर, 1919 को The Times of London ने खबर छापी- विज्ञान में क्रांति, ब्रह्मांड का नया सिद्धांत, न्यूटोनियन विचारों को उखाड़ फेंका गया’। उसके बाद तो मीडिया में आइंस्टीन को लेकर रातों रात ऐसी दिलचस्पी जगी कि वह दुनिया के सबसे मशहूर वैज्ञानिक बन गए। आने वाले कुछ सालों में आइंस्टीन के सिद्धांतों ने भौतिक विज्ञान को नई दिशा दी।
आइंस्टीन की उपलब्धि एक तरफ हैं, कठोरतम साधना एक तरफ हैं। उनका अनुभव एक तरफ हैं, बुद्धिमत्ता एक तरफ हैं। व्यक्ति जन्म के बाद अपनी रूचि ढूंढ लेता हैं, अपने जीवन का मकसद ढूंढ लेता हैं। उसे अपना पसंदीदा काम मिल जाता हैं। वो बखूबी उस काम में झुड जाता हैं। फिर बारी आती हैं परिणाम की…कुछ सफलताएँ शोर मचाती हैं। उनमें दुनिया के लोगों का स्वर झुडता हैं।
ये बुद्धिमत्ता को प्राप्त करने की सफर हैं। जो व्यक्ति सफर पर निकलेगा। वो ही अपने अनुभव से कुछ कहेगा जो दुनिया के लिए अच्छा हैं। ‘बुद्धिमत्ता की मर्यादा होती हैं, एक सीमा होती हैं। लेकिन मूर्खता की कोई सीमा नहीं होती।’ उससे यह भी सिखने को मिलेगा कि हमें बुद्धि पर कितनी और कहाँ लगाम लगानी हैं ! दूसरी तरफ मैं ही बुद्धिमान हूं ! मानकर जो भी करना हैं करते चलो। जीवन अपना हैं। मार्ग भी हमारा होना चाहिए। एकबार ह्रदय से पूछकर अपने कार्य को आरंभ करना। सब पता चल जायेगा। लेकिन कुछ मूर्खता बडी अटपटी होती हैं, वो फंसा लेती हैं। उनमें मेरी बुद्धि है ही नहीं..!
हमें नचा कौन रहा हैं ? ये बात समझ में आए तो भी ठीक हैं।
आपका ThoughtBird. 🐣
Dr.Brijeshkumar Chandrarav.
Gandhinagar, Gujarat
INDIA
dr.brij59@gmail.com
+919428312234.
YOU ARE WRITE ON VERYOUS TYPE SUBJECT.
Very very nice thought
Sirji go for society…you have a good thought and good nature also
Dr Brijesh my friend…khub saru kam thay che; lagela raho…maja avse. koi to apni shakti pahechan se.
Gana samay thi lakhavu hatu aje avadi gau…doctor Go for goal.
આભાર દોસ્તો, કૉમેન્ટમાં નામ લખો વધારે ગમશે…આનંદ