fire of jealousy is very dangerous.
ईर्ष्या की आग बहुत खतरनाक होती है।
महाभारत एक अनमोल ग्रंथ हैं। अनेक घटनाओं का संग्रह हैं। पीढ़ीओं के व्यवहारिक वर्ताव का ग्रंथ हैं। अनेक चरित्रों का महान ग्रंथ हैं। मूल्य और मूल्यहास की अद्भुत परंपरा का ग्रंथ हैं महाभारत।
महाभारत के अनेक चरित्रों में से आज शकुनि की बात करते हैं। शकुनि गंधार साम्राज्य का राजा था। यह स्थान आज के समय में अफ़्ग़ानिस्तान में है। वह हस्तिनापुर महाराज और कौरवों के पिता धृतराष्ट्र का साला था। इस नाते वो कौरवों का मामा था। दुर्योधन की कुटिल नीतियों के पीछे शकुनि का हाथ माना जाता है। और वह कुरुक्षेत्र के युद्ध के लिए एवं कौरवों के विनाश के दोषियों में प्रमुख माना जाता है।
युवराज शकुनि गंधार छोडकर नहीं आया होता तो वो गंधार का राजा बनता। मगर शकुनि स्वभावगत ईर्षा की आग में जीनेवाले व्यक्तिओं में से एक था। पांडवों की शक्ति एवं शालीनता से शकुनि को बड़ी जलन थी। अपनी जलन से वो अपना ही सर्वनाश करता हैं। उसका राजा बनना तय था। उसके भाग्य में जो राज्यपद था उसने दूसरों की ईर्षा के कारण गवाँ दिया। अपने वैयक्तिक हित को भी खत्म करने वाली कटुता को लेकर प्रश्ननार्थ खडे होने चाहिए। ईर्ष्या की आग बहुत खतरनाक होती है। महाभारत का ये शकुनि पात्र हमें काफी कुछ संदेश दे जाता हैं। जो खुद युवराज था, उसका गंधार नरेश के रुप में राज्याभिषेक होनेवाला था। लेकिन वो अपने भीतर के स्वभाव वश दूसरों का युवराज पद छीनने चलता हैं। ईश्वर ने खुद को सोभाग्य दिया है उसका विचार करना हैं। शकुनि ये भूलकर दूसरों का भाग्य छिन्न-भिन्न करने की कोशिश करता हैं। उसका क्या परिणाम आया हैं, वो हम भलीभांति समझते हैं।
महाभारत एक शिक्षाग्रंथ हैं, आचरण ग्रंथ हैं। जीवन की कृति का उत्तमोत्तम दर्शनग्रंथ हैं। धर्माचरण के अनमोल संयोग से आज भी महाभारत सर्व प्रकार के समाधान हेतु प्रस्तुत है !! साथ कुरुक्षेत्र की रणभूमि में प्रगट हुई भगवद्गीता का तो क्या कहना..! आज गीता विश्व ग्रंथ कहलाती हैं। महान भारत का ये प्राचीन ज्ञाम वैभव हैं। उसके जरिए हमें अर्जुन की भाँति कर्मरीति सिखना हैं, धर्मरीति सिखना हैं। कर्तव्य को किस हद तक असमंजस स्थिति से गुजरना पडता है ये भी सीख महाभारत देता हैं।
दुर्योधन के जरिए “जानामि धर्मम् न च मे प्रवृत्ति, जानामि अधर्मम् न च मे निवृत्ति।” वाली बात भी ध्यान में आती हैं। एक शकुनि छोटे-से बालक के मन में ईर्षा के बीज बोकर कितना बडे अनर्थ को अंजाम देता हैं। बातें सब जानी हुई हैं लेकिन एक विचार या चरित्र को लेकर उसको समझने का प्रयास करते तब हृदय में खलबली मचती हैं। शायद ये शांत मन में पथराव करने वाले चरित्र हैं। लेकिन साथ ही विचारों में नई उर्जा भरने वाले भी हैं। वैयक्तिक कुछ बदलाव को भी स्फूर्त करते हैं। ये भी अपनी-अपनी मर्ज़ी के हिसाब से..!
अथ श्री महाभारत कथा..!
कथा हैं पुरुषार्थ की ये स्वार्थ की परमार्थ की।
सारथि जिसके बने,श्री कृष्ण भारत पार्थ की..!
आपका ThoughtBird 🐣
Dr.Brijeshkumar Chandrarav
Gandhinagar, Gujarat.
INDIA
dr.brij59@gmail.com
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Nice article dr.saheb
Wonderful