Our greatest freedom
is the freedom to choose
our attitude…!
Victor E. Frankl
हमारी सबसे बड़ी आज़ादी चुनने की आज़ादी है, हमारा रवैया !!
Victor E.frankl is austrian neurologist and psychologist.
विक्टर एमिल फ्रैंकल (26 मार्च 1905 – 2 सितंबर 1997) एक ऑस्ट्रियाई न्यूरोलॉजिस्ट, मनोवैज्ञानिक, दार्शनिक और होलोकॉस्ट सर्वाइवर थे। जिन्होंने मनोचिकित्सा के एक स्कूल, लॉगोथेरेपी की स्थापना की थी। जो जीवन में अर्थ की खोज को केंद्रीय बताता है। मानव प्रेरणा ‘लोगोथेरेपी’ अस्तित्ववादी और मानवतावादी मनोविज्ञान सिद्धांतों का हिस्सा है।
मनोविज्ञान जीवन विज्ञान भी है। व्यक्ति को स्वतंत्रता से विकसित करने वाला ज्ञान भी मनोविज्ञान हैं। व्यक्ति के मानस को समझना उनके वर्तन व्यवहार का अभ्यास भी मनोविज्ञान ही हैं। मन को जानने की और स्वीकार करने की मन की प्रतिबद्धता मनोविज्ञान हैं। मनुष्य के रुपमें अपनी और दूसरें की स्वतंत्रता बनाए रखने की समझ सृष्टि की लाजवाब स्वीकृति हैं। इसके फायदें भी अनगिनत हैं।
मनोविज्ञान को attitude मनोवलण का विज्ञान भी कहा गया हैं। सबके अपने विचार हैं, सबकी अपनी जन्मजात स्वतंत्रता हैं। सबको प्रकट होने का अबाधित अधिकार हैं। मानवीय उन्नति को प्रेषित एवं प्रेरित करनेवाला ये विज्ञान हैं। अस्तित्व और मानवता का बेहतरीन मेल मनोविज्ञान के जरिए संभव हो सकता हैं। मैं समझता हूं दूसरें मनुष्य को समझना, उसका स्वीकार करना, उसकी स्वतंत्रता की परवाह करना या दूसरें को मानवीय संवेदना से संभालना भी मनोविज्ञान हैं। मुझे तो मनोविज्ञान को “प्रेमविज्ञान” कहना भी मुनासिब लगता हैं।
आज ऐसे एक मनोविज्ञानी की बात छेडी है तो कुछ उनके विचार भी रखना ठीक हैं। विक्टर फ्रैंकल: “एक आदमी से सब कुछ लिया जा सकता है, लेकिन एक चीज: मानव स्वतंत्रता का अंतिम हिस्सा है – किसी भी परिस्थिति में अपना दृष्टिकोण चुनना, अपना रास्ता चुनना।”
विश्व में मानवीय संवेदना ने सबसे ऊपर प्रशंसा प्राप्त की हैं। इसका मतलब मनुष्य को संवेदना स्वतंत्रता ओर स्वीकार सबसे ज्यादा पसंद हैं। कहीं स्वतंत्रता के दुष्परिणाम भी ध्यान में आते हैं। उसका कारण शायद व्यक्तिमूलक सफलता या समूहमूलक शक्ति का दुष्प्रभाव ही हैं। इससे बचकर ही मानवीय हित व कल्याण का मार्ग सक्षम हो सकता हैं। जहाँ स्वीकार नहीं वहां उत्पीड़न बढेगा। वैयक्तिक व सामाजिक रुप से वहाँ शांति न होगी। आज कहीं न कहीं ये स्वार्थपरता के कारण विश्व चिंतित हैं। शांति के मार्ग ढूंढने पडते हैं।
विक्टर का एक ओर विचार:
“मेन्स सर्च फॉर मीनिंग” में फ्रैंकल कहते हैं: हालाँकि, स्वतंत्रता अंतिम शब्द नहीं है। आज़ादी कहानी का हिस्सा है और सच्चाई का आधा हिस्सा। स्वतंत्रता पूरी घटना का नकारात्मक पहलू है जिसका सकारात्मक पहलू जिम्मेदारी है। वास्तव में, जब तक स्वतंत्रता को जिम्मेदारी के रूप में नहीं जिया जाता, तब तक स्वतंत्रता महज मनमानी में बदल जाने का खतरा है। इसीलिए मेरा सुझाव है कि पूर्वी तट पर “स्टैच्यू ऑफ लिबर्टी को पश्चिमी तट पर स्टैच्यू ऑफ रिस्पॉन्सिबिलिटी” से पूरक बनाया जाए। (Information source by Wikimedia) स्वतंत्रता और जिम्मेदारी की समझ के बीच मानवीय मूल्य स्थापित हो सकते हैं। बहुत बड़ी बात को स्वीकार करना भी मानवीयता हैं।
विक्टर के मनोविज्ञान एवं फिलॉसफी से मुझे सनातन भारतीय दर्शन में ये बातें स्पष्ट दिखाई देती हैं। भारतभूमि के संस्कार कुछ स्वीकार के आधारस्तंभ जैसे हैं। विश्व को मार्गदर्शन करने वाले मानवीय मूल्य भारत में से इसी कारण प्रगट हुए हैं। लेकिन उसमें क्षति आएगी तो भुगतना भी मानव समाज को ही करना पड़ेगा।
ईश्वर की समदर्शिता का विजय हो इसी भावना के साथ ‘विक्टर फ्रैंकल’ को शत-शत वंदन !!
आपका ThoughtBird. 🐣
Dr.Brijeshkumar Chandrarav
Gandhinagar, Gujarat.
INDIA.
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