पुरातन वेदों की परिभाषा शास्त्रीय हैं।
मनुष्य जीवन की उन्नति का एकमात्र आधार हैं..वेद !!
आज वेद में की गई यज्ञ की बात करता हूँ।
वेद भारतवर्ष के अद्भुत ग्रंथ हैं। पुरातन हैं, शाश्वत है आज भी प्रस्तुत हैं। वेद के श्लोक को हम ऋचाएं कहते हैं। इसमें कही गई हरेक बात का भौगोलिक व ब्रह्मांडीय प्रमाण हैं। समग्र मानव सृष्टि के लिए सम्यक ज्ञान वेदों में ही हैं।
स्वामी दयानंद सरस्वतीजी ने ” वेदों की ओर वापस” आने की बडी अह्लेक जगाई। पूरे भारत वर्ष को वेद की प्रमाणभूतता पर फिर एक बार सोचने के लिए मजबूर कर दिया। “आर्यसमाज” की स्थापना करके राष्ट्र में वेद संधान का माहौल खडा किया था। वेद प्रचारक स्वामी शान्तानन्द सरस्वती दर्शनाचार्यजी ने यज्ञ की महिमा प्रस्तुत की हैं। इसकी आज थोड़ी-बहुत झांकी करें।
यज्ञ किसे करते हैं ?
त्याग पूर्वक किया गया प्रत्येक कर्म जिसमें ईश्वर की आज्ञा का पालन होता है तथा जिस कर्म से समस्त संसार का कल्याण होता है, उसे यज्ञ कहते हैं।
यज्ञ के कितने प्रकार हैं, उसके क्या नाम हैं ?
यज्ञ दो प्रकार के हैं। १.आत्मयज्ञ २.द्रव्ययज्ञ
इन दोनों प्रकार के यज्ञ के नाम से ही हम काफी कुछ समझ सकते हैं। एक में ईश्वर के प्रति समर्पित होकर ध्यान-जप-चिंतन करने की बात हैं। दूसरें में अग्नि में घृत हवन सामग्री की आहूति दी जाती हैं।
यज्ञ और समर्पण का बडा ही गहरा संबंध हैं। शायद ईश्वर की ये सबसे पसन्दीदा बातें होंगी। एक में आत्मशुद्धि होती है, दूसरें से समष्टि की शुद्धि होती हैं। दोनों में कोमन बातें स्वाहा की हैं। खुद से ज्यादा दूसरें का विचार करना ये यज्ञ की परिभाषा हैं। प्रसन्नचित्त होकर कुछ येसा करना जिसमे “मैं” हटकर “सब” बन जाता हैं। “मैं” को स्वाहा करना और सबका कल्याण सोचना कोई सामान्य कार्य नहीं हैं। ये बडी बहादुरी भरा कार्य हैं। बात छोटी लगती हैं। मगर है बडी ताक़तवर !! मनुष्य जीवन का सबसे शानदार पहलू यज्ञ हैं। जीवन की अलौकिक सुगंध जैसा पहलू। सृष्टि के कल्याण भाव को लेकर हम “द्रव्ययज्ञ” करते हैं। इसका बार-बार का अनुसरण अपनी आंतरिक शक्ति को प्रज्वलित करता हैं। इससे एक मनुष्य के भीतर आत्मशुद्धि की कल्पना जाग्रत होती हैं। एक जीवन ही यज्ञ रुप बनता चला जाता हैं।
भारतवर्ष येसे कई यज्ञपुरुषों के चरित्रों से भरा हुआ हैं। विश्व में ये लोग नई क्रांति को जन्म देते हैं। लंबे समय तक उनकी सुवास का प्रसरण हो उठता हैं। उनका जीवन एक “यज्ञवेदी” से कम नहीं होता। एक दूसरी बात भी यज्ञ से झुडी हैं, विज्ञान के प्रमाण के साथ। संसार में कोई भी पदार्थ नष्ट नहीं होता केवल रूपांतरित होता हैं। सूक्ष्मरुप बनकर पदार्थ वायु मंडल में समाहित हो जाता हैं।
आत्मयज्ञ में भी व्यक्ति का समष्टि के कल्याण हेतु सूक्षमातिरुप प्रकट होता हैं। एक दृश्यरूप तथ्य हैं, दूसरें में अदृश्यरुप तथ्य हैं। दोंनो यज्ञ की प्राकृतिक प्रक्रियाएं लगभग एक ही हैं।
आपको क्या लगता हैं ? मुझे तो यही लगता हैं।
आपको “आनंदविश्व सहेलगाह” का “विचारयज्ञ” समर्पित करते हुए आनंद प्रकट करता हूं।
आपका ThoughtBird 🐣
Dr.Brijeshkumar Chandrarav.
Gandhinagar, Gujarat.
INDIA
dr.brij59@gmail.com
9428312234
ઉદભૂત
ખૂબ સરસ રીતે રજૂ કરવામાં આવ્યો બ્લોગ
અભિનંદન ખૂબ સરસ
હિન્દુ ધર્મ અને યજ્ઞ વિજ્ઞાન ને જોડતી સરસ વાત
આર્ય સમાજે ખૂબ સારું કામ કર્યું છે
આભાર…thanks 🙏