Beginning is not a normal event.
प्रारंभ कोई सामान्य घटना नहीं हैं।
Let’s we start something new.
पवित्र चैत्र मास नाविन्य से जुड़ा हैं। चैत्र प्रारंभ से जुडा हैं। ब्रह्माजी ने ईसी दिन सृष्टि की रचना की थी। आज भी भौगोलिय घटना के तहत सृष्टि में परिवर्तन की लहरें उठती रही हैं। प्रकृति में सबसे ज्यादा बदलाव दिखता हैं। मैं आज के ब्लॉग में मात्र प्रारंभ की बात करना चाहता हूं। जब मैंने इस विचार पर थोडी मानसिक कसरत की तब काफी कुछ ध्यानमें आया हैं, बस इसे लिख रहा हूं।
जीवन जन्म-मृत्यु के बिच का एक समय का फासला हैं। संसार के सभी प्राणी इस घटना के साक्षी बने हैं, बनते आए हैं और बनते रहेंगे। क्योंकी प्रारंभ हैं, अदृश्य होने के बावजूद प्रारंभ हैं। प्रारंभ यानि शुरुआत start, beginning..! पहेले तो ये भी समझ ले की हम भी कुछ प्रारंभ की घटना के तहत आकारीत हैं। हम जन्म से या इससे पहले भी…कहीं शक्यता के रुप में- संभावना के रुपमें प्रारंभ की पहेली अवस्था में आए होंगे। मतलब आरंभ में संभावना निहित हैं, बाद में हकीक़त भी। जो दृश्यमान आकारीत हुआ है, ये वैसे नहीं हुआ। कभी न कभी कहीं न कहीं इनका आरंभ हुआ होगा। ईश्वर आरंभ हैं, जन्म आरंभ हैं, कर्म आरंभ हैं और ज्ञान भी आरंभ हैं। आज हम कर्म से जहां पर हैं, वहां किसी आरंभ ने पहुचाया हैं। आज हममें जो बुद्धिमत्ता विध्यमान हैं, वो कहीं से प्रारंभ हुई थी।
जीवन को हम यात्रा भी कहते हैं। मतलब इस यात्रा की आरंभिक क्षण भी होगी। every journey has its own beauty. Just go with the flow. यात्रा के प्रवाह में बहना भी सुंदरता हैं। हरेक यात्रा को शुरु करने से पहले उसका प्रारंभ होगा ही। जैसे अणु पदार्थो का सूक्ष्मरुप हैं। स्नायु का न्यूनतम स्वरुप कोष हैं। जैसे एक बूँद से जलधि की विशालता हैं। एक बीज में वृक्ष का आरंभ है। कहीं ना कहीं सूक्ष्मता से ही विराटता आकारीत हुईं हैं। इसीलिए ‘प्रारंभ’ कोई सामान्य घटना नहीं हैं। एक विचार से विज्ञान की कईं खोज संभवित हुई हैं। वैसे ही प्रारंभ की भी बड़ी अहमियत है।
जरुरी हैं कुछ प्रारंभ हो। हमारे भीतर या हमारे आसपास..! आज विश्व में कईं धर्म-संप्रदाय कोई इकोनॉमिक संस्था, राजकीय संगठन या कोई एज्युकेशन संस्थान आकारीत हैं, वो किसी एक व्यक्ति के प्रारंभ से ही विद्यमान हैं। कहीं एक विचारबीज प्रकट हुआ होगा। और उसकी नींव रखने का प्रयास हुआ होगा। उस घडी को में प्रारंभ या आरंभ कहता हूं। एक शब्द में कितनी ताकत हैं ? आप पढ रहे हैं उस आर्टिकल का भी एक विचारबीज से प्रारंभ हुआ होगा। मुझे लगता है, अब आपके मन में आरंभ की परिकल्पना बैठ गई हैं।
मैंने इस वैचारिक ब्लोग को मेरा निमित्त कर्म समझकर शुरु किया था। एक क्षण थी उसने आरंभ करवा दिया। अब मुझे बस बहाना हैं। “जस्ट गो वीथ फ्लो” इस ब्लॉगका नाम भी “आनंदविश्व सहेलगाह” ऐसे ही घटित हुआ। आप देख रहे हैं, पढ़ रहे हैं। एक कर्म बहता जा रहा हैं। मेरा काम कैसा हैं ? अच्छा है, बूरा हैं इसमें मैं नहीं पडता। बस बहता हूँ एक विचार यात्रा में..! मुझे लगता है ये आरंभ हैं। ये कहाँ तक ले जाएगा पता नहीं। मगर उसका मुकाम बहतरीन होगा इस में श्रद्धेय हूं।
कोलकाता में महात्मा दिलीपकुमार रॉय करके एक संत हो गए। वो अपने भक्त जन को एक बात बताते थे; ” मैंने जिस आम के पेड से फल खाया वो बहुत अच्छा हैं, मैं आपको वो आम के पेड का निर्देश करता हूँ। मैं ओर कुछ नहीं करता।” इस बात में बडी विनम्रता हैं, साथ में निमित्तभाव की ऊंची कल्पना भी..!
आपका ThoughtBird. 🐣
Dr.Brijeshkumar Chandrarav.
Gandhinagar, Gujarat.
INDIA
dr.brij59@gmail.com
9428312234
Goo d
Very nice
Exellent work of Drworldpeace.. Good journey of life.
Blog vanchi Anand thay che… Abhinandan.
Sir, Khub saras kam Karo cho