Possibility is Everywhere..!
संभावना से भरा विश्व और संभावना की जनक कुदरत !
नई संभावनाएं लेकर सूरज निकलता हैं, आशा-उम्मीदों का अदृश्य रुप सजने लगता हैं। दिल-दिमाग में हौंसले पलते हैं। एक नीड मैं भी नई चहल उठती हैं। एक पंछी संभावना की उडान भरता हैं। एक छोटा-सा फूल भी सुनहरी मुस्कान भरें संभावना विश्व में अपनी उपस्थिती लेकर आता हैं। ओर हम मनुष्य की तो सबसे उपर बुद्धिमानी भरी दौड..!
What Happen? क्या हुआ से झुडी हैं, हमारी बेहतरीन जिंदगी। जन्म से लेकर मृत्यु की आखिरी सोंस तक हम सब संभव से झुडे हैं। क्या हुआ ? के अचंभित सवाल से लेकर…कुछ हो सकता हैं? की राह तकका सफर संभावना हैं। संभावना में उम्मीद हैं, कल अच्छा हो सकता है, की एक सुनहरी सोच हैं। ईश्वर की अद्भुत दुनिया में संभावनाएं भरी पडी हैं। गीताकार श्रीकृष्ण ने भी उसके प्रकट होने की संभावना की हैं।
यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत ।
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम् ।।
परित्राणाय साधूनाम् विनाशाय च दुष्कृताम् ।
धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे ।।
(ज्ञान-कर्म सन्यास योग:४ श्लोक ७-८)
स्वयं ईश्वर संभावना प्रिय हैं। जब कुछ पीड़ाएं बढ़ जाती हैं, समस्याओं से संसार संवृत हो उठता हैं। तब ईश्वर आएंगे ऐसी कुछ कल्पनाएं सबके मन में बसी होती हैं। ये विचार का हमारे मन में प्रकट होना भी संभावना का एक रुप हैं। काफी-कुछ सुनहरा घटित होता रहा हैं, इस सृष्टि में..! आज हमारें सामने जो दृश्यमान जगत हैं वो किसी न किसी की कल्पना का जन्म हैं। यहाँ सब समान हैं। किसी के साथ क्या कुछ अचंभित आकारित हो किसे पता ? यहाँ रंक से लेकर राजा तक की सफरें भरी हुई हैं। यहाँ सामान्य व्यक्ति पल में असामान्य व्यक्ति बन जाता हैं। फिर..ईश्वर की कमाल कहकर हम अहोभाव प्रकट करते हैं। कोई दुर्घटना में आबाद बच जाता हैं। ईश्वर की अदृश्य मर्ज़ी यानी संभावना..!
मनुष्य के रुप में हमें अपने भीतर भी कुछ संभावनाएँ पालनी चाहिए। ये बहुत बडी बात हैं ? हम कैसे कर सकते हैं ? उत्तर आसान हैं, अपने साथ जीने वालों में संभव देखना। ईश्वर का कोई भी अंश महान हैं। मुझे ईश्वर की कृपा प्राप्त करनी है तो दूसरें को भी हकदार समझना होगा। ईस जगत में मैं हूं साथ कोई और भी हैं। ये मानसिकता बढनी चाहिए, और ये नहीं बढती तो कूपमण्डूक वृत्ति से कौन बचाएगा ? आखिर जीवन हमारा निजी हैं, सोच भी वैयक्तिक व निजी होगी। अब संभावना में श्रद्धा बनाए रखना या नहीं वो अपने-आप पर निर्भर हैं।
एक छोटे-से बीज में भी वृक्ष की संभावना है। हम तुच्छता पाले बैठे हैं, इसमें बीज की क्या भूमिका ? मनुष्य बौद्धिक होता जा रहा हैं। सृष्टि के कईं रहस्यों को खोलता जा रहा हैं। फिर भी असमानताएं पालकर क्या साबित करेग़ा ? संभावनाओं का रहस्य खोल नहीं पालेगा। मनुष्य जीवन को हम जन्म-जन्मांतर का सफर मानते हैं आए हैं। तो फिर ईश्वर की “संभवामि युगे युगे” की प्रोमिस में श्रद्धेय बनेंगे ?
संभावना में श्रद्धावान होना सकारात्मक सोच का प्रमाण हैं। ये तो मैं अपनी ईश्वर संबंधी मान्यता से मत प्रेषित करता हूं। इससे भी बडी बात कोई और सोच सकता है..ये भी एक संभावना हैं !!
I’m believe this possibility…It’s my inner Happiness.
GOD WILL DEFINITELY COME.
धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे..!
आपका ThoughtBird.
Dr.Brijeshkumar Chandrarav.
Gandhinagar, Gujarat.
INDIA.
dr.brij59@gmail.com
9428312234.
Amazing bhai
Khub saras.
આભાર મિત્રો, જ્યારે કૉમેન્ટ કરો ત્યારે આપનું નામ લખો…please.