IF you become a source of joy,
you will have wonderful Relationships.
SADHGURU.
एक विचार जीवन उन्नति का कारण बन सकता हैं। एक शब्द जीवन की गति तय कर सकता हैं। आज सद्गुरु द्वारा कि गई आनंद और संबंध की बात को थोडी विचार प्रक्रिया के हवाले करता हूँ। यदि आप आनंद का स्रोत बनाते हैं, तब आपके अद्भुत रिश्ते होंगे।
जीवन रिश्तों से बनता हैं। मनुष्य के रुप में जब हम झुंड या समूह में रहने लगें तब सामाजिक बनते चले गए। इस पूरे ढांचे में रिश्ते केन्द्रभूत हैं। जैसे कोई पदार्थ का निर्माण अणुओं से होता हैं। वैसे ही समाज अच्छे रिश्तों से स्वस्थ होता हैं। एक परिवार भी अच्छे रिश्तों से ही अच्छी परंपरा निर्माण कर सकता हैं। इसका मतलब मनुष्य जीवन की स्वस्थता में रिश्तों का बडा योगदान हैं।
व्यक्ति जीवन में रिश्तों को बडा महत्व हैं, ये तो हम समझ पा रहे हैं। लेकिन रिश्तों का शानदार होना भी एक बात हैं। जन्म के कारण रिश्तें ज्यादा मिलते हैं। उससे एक परिवार, एक समाज बनता हैं। साथ ही रिश्तों के कारण कईं बंधन भी निर्मित होते हैं। फिर अपेक्षाएं पैदा होती हैं। और ये रिश्तेदारियों में कभी मन-मुटाव प्रवेश कर जाता हैं। कोई व्यक्ति का निजी स्वभाव उनके व्यवहार के जरिए बाहर दिखाई पडता है। वर्तन अच्छे के लिए हैं तो संबंध बडे अच्छे तरीकों से बने रहते हैं। लेकिन जब स्वार्थ का विचार सर्वोपरी बनें, तब मुश्किलें ओर बढ जाएगी। संसार में जो कुछ परेशानियाँ है, वो इसी तरह पैदा हुई हैं। तब अच्छे रिश्तों का टिकना नामुमकिन हैं।
मैं एक मजबूत रिश्ता उन्हें करता हूं कि जिसमें आनंद समाहित हो। इस जहाँ में आनंद के बग़ैर जो निर्मित होगा वो एक व्यवहार से बढकर कुछ नहीं हैं। सबको अच्छे से जीना है, सबको आनंदपूर्वक का जीवन पसंद हैं। मगर सबकी वास्तविक सोच बदल गई हैं। सब सीखाते हैं, अपना कुछ सोचकर व्यवहार करना, दुनिया बहुरंगी हैं। हमें दुनिया को समझते देर नहीं लगती। समय की विचित्र धारा में कोई सहज ही स्वार्थे सीख लेता है किसीको जबरन सीखना पडता हैं।
कईं लोग आनंद का स्रोत बन जाते हैं। उनकी मस्ती,काम के प्रति समर्पण रिश्तों के प्रति वफादारी बेहतरीन होती है। जीवन को प्रकृति के साथ जोड़कर एक अच्छा मुकाम बनाते हैं। उनकी रिश्तें निभाने की रीत बड़ी लाज़वाब होती हैं। वो कोई संतोषी जीव भजन में मस्त हैं या अपने काम को भजन बना देता हैं। ये सब आनंद के कारण संभव हैं। ईश्वर को आनंद पसंद हैं, ईश्वर ऐेसे आनंदी व्यक्ति को जरुर पसंद करते हैं। सारा संसार उनके साथ संबंध निर्माण करने का प्रयास करता हैं। लेकिन वो उनकी मस्ती में पागल रहते हैं। प्रकृति के साथ उनका एक ताल होता हैं। उनके साथ रिश्ता कायम करना पागलों का काम जैसा होगा। इस तरह ये आनंदी पागल अकेले ही पाए जाते हैं।
आनंद वहीं टिकता हैं जहां पागलपन हैं। दो व्यक्तिओं के बीच संबंध निभाने का पागलपन होना चाहिए। जीवन तभी खूबसूरत रिश्तों से भरा होगा। उन व्यक्तिओं के कारण ही समाज में अच्छे रिश्तों का स्थापित होना संभव हैं। “आनंदविश्व सहेलगाह” का ये एक छोटा-सा प्रयास हैं। हम विचार रखतें हैं..! ओर कुछ नहीं..! ये हमारा आनंद कर्म हैं..!
With great emotions..!
This blog is dedicate to all my dearest friends.
आपका ThoughtBird
Dr.Brijeshkumar Chandrarav
Gandhinagar.Gujarat.
INDIA.
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