शिवसंकल्प और कल्याण की रात्री !
शुभतत्व की प्राप्ति के लिए मन का ताल…training of mind.
शिवरात्री…मन और तन की उर्जा का संचार करनेवाली रात हैं !!
ईस श्लोक को पढ़े;
धर्मों हि तेषामधिको विशेष: धर्मेण हीना: पशुभि: समाना: ।।
आहार,निद्रा,भय और मैथुन ये तो इन्सान और पशु में समान है। इन्सान में विशेष केवल धर्म हैं, अर्थात् बिना धर्म के लोग पशुतुल्य हैं। अब धर्म क्या हैं ? मैं कोई धर्माचार्य नहीं हूं लेकिन एक जीवनदृष्टा के रुप में कुछ बातें रखता हूँ। इस संसार के प्रति, समष्टि के प्रति मेरे द्वारा शुभत्व का संसार हों। एक जीवन दूसरें जीवन में समदर्शी क्रांति का निर्माण करें। जीव जगत में सुचारु ढंग सा जीवन-यापन धर्माचरण ही हैं। भारतीय जीवन प्रणाली में ऐसे कई पहलू हैं जो इस मान्यता को दृढ कर सके। शिवरात्री मानव-जीवन के लिए जीवन-संकल्प की प्रतिबद्धता हैं। शुभत्व- समत्व- कल्याणत्व का भाव निर्माण करनेवाली संकल्परात्री शिवरात्री हैं।
What is Spirituality ? आध्यात्मिकता क्या हैं ?
मनुष्य को पशु से अलग बताने वाली और पशु का भी कल्याण समाहित हो ऐसी जीवनदृष्टी आध्यात्म हैं। अपने भीतर का मनुष्य आनंद व एश्वर्यसंपन्न तभी बन सकता है जब उनमें समदर्शिता निर्माण हो। इसके विपरीत धर्म का आचरण कदापि नहीं। और जो सहज स्वीकार्य नहीं ऐसे पहलू को धर्म बनाकर चलते है, वो समष्टि का प्रदुषण हैं। धर्म व आध्यात्म के विचार में सहज स्वीकार्यता होती हैं। समष्टि के कल्याण का भाव होता हैं। इसके बगैर जो धर्म के नाम पर अध्यात्म के नाम पर विचित्रताओं का फैलाव हो रहा है, उससे शिव की खुशी होंगी क्या ? याद रखना चाहिए रुद्रस्वरुप शिव संहारक भी हैं। समस्त ब्रह्मांड को स्वाहा करने की विराट क्षमता शिव में हैं। इसीलिए शिवसंकल्प क्या होना चाहिए वो मनुष्य के रुप में समझमें आना चाहिए।
शिव का प्राकट्य इसी रात्री को हुआ था। इसलिए शिवत्व का विचार ही शुभत्व मार्ग हैं। इस रात्री को हम मन की क्षमता का विस्तार करने हेतु शिव उपासना में प्रवृत्त हो जाए। शिव शक्ति प्रदाता हैं, वे अमाप-असीम शक्ति के अमोघ स्रोत हैं। शिव असीमित समत्व हैं, शिव शाश्वत है, शिव ही संसार के मूलतत्व है। शिव भूलोक के आधार हैं। उनकी कृपादृष्टि प्राप्त करने का अवसर शिवरात्री हैं।
मनमस्त शिव अपने ही भीतर के आनंद को प्रेरित करते हैं। मिलन और वैराग्य के बीच भी सामंजस्य निर्माण करना शिवत्व हैं। सृष्टि के सभी जीवों में सामानुभूति शिव हैं। जीव मात्र के प्रति शिव सहानुभूति के सागर हैं। उनके प्राकट्योत्सव के अवसर पर उनकी असिमित शक्ति के आशिष हम पर बने इसके लिए प्रवृत होना हैं। ध्यानाकर्षित शिव का ध्यान करके हमारें भीतर के मनुष्य को आनंदित करें। समष्टि के शुभत्व के लिये प्रार्थना करें।
ब्रह्मांड की पवित्र आवाज ऊँ कार से अनुस्यूत होकर जीवन का अद्भुत आनंद प्राप्त करें।
पूणमिदं की वंदना में…!
आपका ThoughtBird.🐣
Dr.Brijeshkumar Chandrarav
Gandhinagar, Gujarat.
INDIA.
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Very nice article on Shivbaba