आज बधाई हैं..!
खुशबू की रानी आई हैं, वन उपवन में बहार लाई है।
हरएक पन्नों में हरियाली छाई हैं। फिर एक बार पलाश के वृक्षों ने रंग सजाएँ हैं। मिलने-मिलाने की ऋतु, प्रकृतिक एकरूपता की अद्भुत बेला..!
वसंत आई हैं..हां बेशुमार आनंद के साथ !!
वसंत के बारें में काफी कुछ लिखा गया हैं। वसंत की प्राकृतिक असरों से लेकर, वसंत की मादकता पर भी काफी कुछ लिखा गया हैं। कविता- कथा से लेकर नाटक और उपन्यास भी लिखें गए हैं। भारत के संस्कृत कविओंने ऋतुकाव्य का एक साहित्य का प्रकार भी खोज निकाला था। भारतवर्ष की लगभग सभी भाषाओं में वसंत का महिमा वर्णन मिलेगा।
मैं वसंत एक नयें विचार से लिख रहा हूँ। वसंत के साथ माँ सरस्वती की पूजा अर्चना व साधना भी जुडी हैं। माघ माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी को “वसंत पंचमी” मनाई जाती हैं। इसे श्री पंचमी, माघ पंचमी भी कहते हैं। ये कला-संगीत व साहित्य-शिक्षा संबंधित विद्याओं के क्षेत्र से जुडे लोग के पूजा-अर्जन का पर्व हैं। माँ सरस्वती ज्ञान और चेतना का प्रतिनिधित्व करती हैं। वे वेद जननी हैं, मंत्र-श्लोक में बसी ज्ञानदेवी हैं। मन-बुद्धि का प्रकटरूप विद्या हैं। वाणी व वर्तनी विद्या की क्रियाएं हैं। इसी पवित्र दिन को माँ सरस्वती का अवतरण हुआ था।
मनुष्य जीवन की उन्नति का मार्ग बुद्धि और चेतना के मार्ग से ही गुजरता हैं। सृष्टि के सभी प्राणीओं में से मनुष्य ने अपनी चेतना को विकसित किया साथ ही बुद्धि पूर्वक के आचरण से नए आयाम खडे किए हैं। पारस्परिक संवाद से आगे, संवेगात्मक अनुसरण के लिए वाचिक संकेत का प्रयोग किया। जिसे हम बोली या भाषा कहते हैं। भाषा से मनुष्य की प्रतिभा को निखरने का अवसर मिला। इसे हम ज्ञान का प्रादुर्भाव कहेंगे। योग्यतम दिशा एवं गतिशीलता के कारण ज्ञान प्रकाश का फैलाव हुआ। विश्व में आज अनेक भाषाएँ हैं। उनके जरिए ज्ञान-विज्ञान के बेशुमार द्वार खुल गए। आज मनुष्य चांद तक व मंगल तक पहुंच गए हैं। ब्रह्मांड की असीमित शक्तिओं का ज्ञान प्राप्त करने लगा।
भारतवर्ष की सांस्कृतिक विरासत कोई अलौकिक के निमित्त कारण से बाँधी हुई हैं। इसीलिए हम ज्ञान साधना से तपश्चर्या से प्राप्त करते है ऐसा मानते हैं। युगों से ये परंपरा चली आ रही हैं। और इस परंपरा की देवी हैं, माँ सरस्वती..!
या कुन्देन्दुतुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृता ।
या वीणावरदंडमंडित करा या श्वेतपद्मासना ।।
जो विद्या की देवी कुन्द के फूल, चंद्रमा, हिमराशी, मोती के हार की तरह धवल वर्ण की हैं और श्वेत वस्त्र धारण करती हैं। जिनके हाथ में वीणा- दंड शोभायमान हैं, जिन्होंने श्वेत कमलों पर आसन ग्रहण किया हैं। ये हमारी ज्ञानदेवी का थोड़ा सा वर्णन हैं। हम इस प्रार्थना से संतृप्त हुए हैं। हमारी ज्ञान साधना इन्हीं शब्दों से शुरु होती थी। आज हम कितने भी बडे हो गए हैं। फिर भी या कुन्दे…सुनते ही मां सरस्वती के बच्चें बन जाते हैं। भारत के लगभग सभी शैक्षिक संस्थानों मे ये प्रार्थना अवश्य रही हैं। आज कोई भी बच्चा मां सरस्वती का अनादर करने वाला नहीं मिल सकता। क्योंकि ये ज्ञान अर्जन की बात ही माँ सरस्वती का पर्याय बन चूकी हैं।
भारत ज्ञान का देश हैं। और ज्ञान कभी अराजकता नहीं फैलाता। ज्ञान से मनुष्य को मुक्ति मिलती हैं। ” सा विद्या या विमुक्त ये ” भारत इसी कारण सबसे गौरवशाली हैं, सांस्कृतिक हैं, मानवीय है। हमारे देश में ज्ञान प्राप्ति आशीर्वादात्मक हैं, कृपा हैं, माँ शारदा का प्रसाद हैं। मनुष्य इस कृपा से अकल्पनीय बुलंदी हांसिल कर सकता हैं। भारत असीमित ज्ञान का भंडार हैं। विश्व का ज्ञानगुरु भारत देश हैं। और हमारी ज्ञानदेवी माँ सरस्वती !! आज माँ वाग्देवी, शब्ददेवी व विचारदेवी के चरणों में लाख-लाख वंदन करते हुए विश्व के सभी ज्ञान आराधकों को बधाई-बधाई। साथ ईश्वर की दृश्यमान अवस्था…वसंत की भी बधाई !!
ज्ञानदेवी की कृपा का अनादर मतलब विनाश भी हैं। भारतवर्ष ज्ञान-पूजक है ईसीलिए अमरत्व धारण करें हुए खडा हैं। हमारे “ज्ञानराष्ट्र” के प्रति गरिमापूर्ण व्यवहार हमारें संस्कार हैं।