No great thing is Created Suddenly…!
कोई भी महान चीज अचानक नहीं बनती…!
एपिक्टेटस हेलेनी काल के एक युनानी दार्शनिक थे। वह हिरापोलिस फ्रिगिया में सन् 50 ईस्वी में पैदा हुए थे। अपने निर्वासन तक रोम में रहे बादमें उत्तर पश्चिमी युनान के निकोपोलिस में रहने चले गए।
ग्रीक में एपिक्टेटस शब्द का सीधा सा अर्थ हैं ‘प्राप्त’ या ‘अर्जित’। एपिक्टेटस स्टोइजिज्म में अपने काम के लिए जाने जाते थे। स्टोइजिज्म निष्ठुरता और सहनशीलता के बीच एक समायोजन हैं। ये दर्शन की एक शाखा जो लोंगों को भावना दिखाए बिना सभी चीजों को सहना सिखाती थी। एपिक्टेटस का जन्म गुलामी में हुआ था। बादमें अपने जीवन में, वह एक महत्वपूर्ण दार्शनिक आवाज बन गए। जिसका प्रभाव पीढ़ियों को प्रेरित करेगा। एपिक्टेटस सिखाते हैं कि “अच्छे और बुरे की पूर्वधारणाएं (प्रोलेप्सिस) सभी के लिए समान हैं।”
एपिक्टेटस के कुछ शानदार विचारों पर एक नजर…!
“भलाई को बाहरी वस्तुओं में न ढूंढो, इस अपने आप में खोजो।”
“या तो भगवान बुराई को खत्म करना चाहता हैं और नहीं कर सकता।
या वह कर सकता हैं, लेकिन नहीं करना चाहता।”
“छोटी छोटी बातों से विचलित होना, दुनिया का सबसे आसान काम हैं, अपने मुख्य कर्तव्य पर ध्यान दो।”
मैं तो एक विचार मात्र के दीवानेपन में बहता जा रहा हूँ। एक नियमित लेखन प्रवृति के कारण कुछ छान-बीन करता हूँ। और मिलते हैं नये-नये किरदार..! विश्व को आदर्श सिद्धांत भेट करने वाले जिसमें शायद ईश्वर की बानी का रणकार उठता हैं। उनके शब्दों में जादुई असर होती है, जो विचार हमें अपने आप सोचने प्रेरित करता हैं। हम इसी सामान्य प्रक्रिया के तहत कुछ सोचते हैं फिर लिखते हैं। थेन्क यु वेरीमच..एपिक्टेटस सर !!
विश्व में कोई भी महान चीज अचानक नहीं होती। प्रकृति में तो कईं उदारण हैं। लेकिन एक छोटी-सी घटना.जैसे द्रव्य का निर्माण ! धरती के भीतर एक पत्थर का हीरा बनना। कईं रसायनों का आविर्भाव ऐसे नहीं हुआ। हजारों सालों की अदृश्य प्रक्रियाएं घटती हैं। ईश्वर के प्रकृतिगत सिद्धांत का अद्भुत परीणाम हमें अचंभित करता रहा हैं। विश्व में आज भी कईं घटनाओं का ताग मिलना संभव नहीं हुआ। जो भी हैं कुदरत का हैं। ये सब ऐसे ही घटित नहीं हो रहा हैं। इसमें हजारों सालों की तपन हैं, समय के बडे हिस्सों ने कुछ आकार बनाया हैं। शायद मनुष्य के रुप में हम भी अचानक नहीं पैदा हुए। समय की अवधि के बंधन से हम भी कहां अलग हैं। Its not happen Suddenly !!
तपना पडता हैं, कठिन मार्गो से गुजरना पडता हैं। कभी कोई हँसता हैं,
हँसना भी सहना पडे ये कैसी घटना हैं ? हँसना तो आनंदमूलक होना चाहिए। समय का बडा काफिला गुजर जाता हैं, उम्र एक पडाव पर आकर रुक जाती हैं। कोई सफलता-विफलता के साथ झुडा हैं। कभी-कभार श्रद्धा भी डगमगाने लगती हैं। और कुछ सहज ही घटित होता हैं। ईश्वर की ही अदृश्य मर्जी कोई अचंभित आकार सजती हैं। कौन-किसको-कब-क्यों मिला…इन सब प्रश्न के उत्तर में कोई नहीं पडता। जैसी महान घटना आकारीत होती हैं, तब सबका आनंद एक हो उठता हैं। कोई सामंजस्य स्थापित होते देर नहीं लगती।
ईश्वर महान हैं, महान ईश्वर हैं भी..! ईश्वर डर नहीं प्रेम हैं। ईश्वर के नाम पर डराने से सृष्टि के विभूति नारायण खुश होंगे क्या ? अपने भीतर जवाब हैं ही..! विभूतिअंश अंकुरित होते ही रहेंगे…यहॉं वहाँ और सारे जहाँ में..! नियमित व निरंतर रुप से…!
Thank you very much EPICTETUS Sir,
Salute for your real thought.
आपका ThoughtBird 🐣
Dr.Brijeshkumar Chandrarav
Gandhinagar, Gujarat.
INDIA.
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