शक्ति का रूपांतरण एक अद्भुत ईश्वरीय घटना !!
ऊर्जाका उद्भव और नाश असंभव हैं
लेकिन उर्जाका रूपांतरण ही संभव हैं।
आइन्स्टाइन का ये उर्जा रुपांतरण का सिद्धांत दुनिया के सामने आया तब २ प्रतिशत लोग भी उसे समझने के लिए सक्षम नहीं थे। आज उसे समझने वाला विश्व है। उनका दिया गया सूत्र,
E = mc²
Energy उर्जा
Mass द्रव्यमान
Velocity of light. प्रकाश का वेग।
प्रकृति में ऊर्जा कई अलग-अलग रुपों में मौजूद हैं। प्रकाशऊर्जा, यांत्रिक ऊर्जा, गुरुत्वाकर्षण ऊर्जा, विधुतऊर्जा, ध्वनिऊर्जा, रासायनिक ऊर्जा एवं परमाणु ऊर्जा। प्रत्येक ऊर्जा को एक अन्य ऊर्जा में परिवर्तित या बदला जा सकता हैं। गति और स्थिति भी ऊर्जा हैं।
श्रीमद्भगवत गीता में भगवान कृष्ण के विभूतियोग के कथन को प्रेषित करता हूं। अपने ज्ञानवैभव पर गौरव महसूस होगा।
तत्तदेवावगच्छ त्वं मम तेजोड़शसम्भवम् ॥४१॥
जो भी विभूतियुक्त यानि की एश्वर्यसंपन्न, शोभित व शक्तियुक्त पदार्थ है, उसको तुं मेरे अंश की अभिव्यक्ति ही जान लो। भगवान कहते हैं: “अहं सर्वस्व प्रभवो मत्त: सर्व प्रवर्तते ” मैं ही समष्टि की उत्पत्ति का कारण हूं और मुझसे ही जगत चेष्टा करता-गतिमान हैं।
पंद्रह वे पुरुषोत्तम अध्याय में भी भगवान का उवाच हैं;
यदादित्यगतं तेजो जगद्भासयतेड़खिलम्।
सूर्य का तेज जो पूरे विश्व को प्रकाशित करता हैं, जो चन्द का तेज भी हैं जो अग्नि में भी हैं उसे तुं मुझे ही जान लो।
प्रकृति का सिद्धांत ही ईश्वर का विधमान स्वरूप हैं। इस चेतना को जर्मन आईन्स्टारइन ने महसूस किया है। ईश्वरीय तत्त्वों की ज्ञान प्राप्ति बडी ही धीरज मांगती है, एकाग्रता मांगती हैं। महसूसी का शांत मन साथ अतूट-असीम श्रद्धा का भीतरी प्रवाह कुछ भी कर सकता हैं। ये आध्यात्म मार्ग भी हैं। जब बुद्धि का श्रद्धेय मार्ग पर चलना संभव होता है तब अचंभित भी आकार धारण करता हैं, अलौकिक भी !! ये ईश्वर की खूबसूरत दुनिया हैं, इसमें आनंद ही निहित हैं। आनंद व कौतुक का समाधान ज्ञान हैं। ऐसी ज्ञान प्राप्ति का मार्ग बडा सुहाना होता हैं। जीवन इन्हीं मार्ग से व्यतित होता है तो कुछ न कुछ अचंभित खेल हमसे भी हो सकते हैं। कुछ प्राप्त करने पागलपन के साथ प्राप्ति के प्रशस्त मार्ग के आनंद में रहना हैं। ये कर्म हमारे जीवनधर्म को बहतरीन मार्ग प्रशस्त करेगा…!