हम सत्त्वशील राष्ट्र प्रतिष्ठा के यज्ञपुष्प !!

3
1

 ।। सत्त्ववृत्तिं समाश्रित्य सन्तु राष्ट्रे प्रतिष्ठिता: ।।

‘सत्त्ववृत्ति को धारण करके राष्ट्र में उनको स्थापित होने दे।’

भारत सत्त्व हैं। भारत सत्य हैं। भारत में मनुष्य जीवन के मूलभूत सिद्धांत का परिशोधन हुआ हैं। हजारों सालों की परंपरा और मनुष्य जीवन की उन्नति का विचार भारतीय संस्कृति में सविशेष हुआ हैं। मनुष्य से आगे समग्र ज़ीवसृष्टि की संवेदनशील परिपालन की अद्भुत कल्पना भारत में सबसे ज्यादा हुई हैं। इसीलिए भारत की प्राचीनतम संस्कृति का स्वीकार सहज हो रहा हैं।

India

भारत एक विचार हैं, आचार हैं। साथ ही भारत सख्य भूमि हैं। भारत कुछ तथ्यों को ध्यान करनेवाली तपोभूमि हैं। भारतीय संस्कृति का एक-एक ज्ञान-कर्म पहलू विज्ञान से झुडा है। ओर हमारी प्रकृतिगत वैज्ञानिक सोच अध्यात्म से झुडी हैं। और आध्यात्म समष्टि के कल्याण का ही मार्ग हैं। भारत का भौगोलिक सत्व भी इसीलिए फलप्रद हैं। समय-समय पर भारत में सत्त्ववृत्ति की प्रतिष्ठित होती रही हैं। भारतीय संस्कृति की अमरता का एक महत्त्वपूर्ण पहलू ये भी हैं। राष्ट्र की परम्परागत सांस्कृतिक विरासत का आज भी अडीखम होना ऐसे नहीं हैं। सारी सृष्टि में भारत की आत्मा में कुछ अलग ही प्राणतत्व छिपा हैं। मनुष्य जीवन की उर्ध्वगामीत गतिदृष्टी आनंद व परमानंद को प्राप्त करनेवाली होती हैं।

ईश्वर की सृजन शीलता को भारत के ऋषिओं ने आत्मसात् की हैं। इस तरह ध्यातव्य और ज्ञातव्य की अद्भुत मिसाल कायम हुई वो स्थान भारत भूमि हैं। वेदों की जन्मदात्री भारत भूमि हैं। तप-तपस्या की वाहक ऋषि परंपरा ज्ञानपरंपरा बनी रही….ये है भारतवर्ष की जीवनपरंपरा…!

ऋषि का प्रबोधन हैं,सत्त्ववृत्ति का प्रतिष्ठान होता रहे वो हमारें संस्कार हैं।और इसी परंपरा में हमारें राष्ट्र का अमरत्व सदैव अक्षुण्ण रहेगा। जो सत्वशीलता को धारण करना चाहता हैं उसको क्षति पहुंचाने पर राष्ट्र की गतिशीलता को रोक लगेगी। राष्ट्र की आत्मा का क्षय हो सकता हैं। समाज जीवन तहस-नहस हो सकता हैं। उसकी जिम्मेदारी भारत के हरेक मनुष्य को लेनी पड़ेगी। क्योंकि हम भारत के अमर आत्मा को पहचानने में असमर्थ रहे हैं। इसके विपरीत कोई सामान्य भी, तुच्छ भी इस आस्था को समझकर कुछ समर्पण के संस्कार से प्रेरित होकर राष्ट्र की गरिमा में प्रवृत्त हैं तो…उसका स्वीकार सहज करना हैं। और शायद व्यक्तिगत-समूहगत स्वार्थ वृत्ति से स्वीकार नहीं कर सकते तो…युगों की शक्ति का प्रकोप भी हमें ही झेलना होगा।

भारत की पुण्यभूमि के संस्कार सर्वमान्य, सर्वसमावेशी और प्रकृतिवाद के पुरस्कर्ता हैं। इसके विपरीत प्रभाव प्राकृतिक विपदा के रुप में व्यक्तिगत व सामूहिक रूप भुगतने पड़ेंगे। क्योंकि ईश्वर के अलौकिक तत्त्व के हम-सब पुरस्कर्ता हैं।

आपका ThoughtBird 🐣

Dr.Brijeshkumar Chandrarav

Gandhinagar, Gujarat

INDIA

dr.brij59@gmail.com
09428412234


Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

One thought on “हम सत्त्वशील राष्ट्र प्रतिष्ठा के यज्ञपुष्प !!