The seeds growing slowly,
Its sleeps very well in the land.
The time flows…काल: प्रवहति..!
मुझे ऐसा भी कुछ महसूस होता हैं। बेशक ये कहानी हमारी जिंदग़ी को भी प्रभावित करती हैं। समय के साथ मनुष्य मात्र का ताल-मेल चलता रहता हैं। सबके समय के साथ बडे तालुकात हैं भाई..! समय की गति को कभी हम पकडते हैं, कुछ लम्हों को अपने भीतर पालते हैं। समय पकड नहीं पाते, महसूस कर पाते हैं। समय दिखता नहीं फिर भी हम सब उनके इशारों पर ही चलते हैं, दौडते- भागते हैं। कभी खुशी कभी गम की तरह समय हमारे आसपास ही बहता हैं।
धरती के आंगन के हम भी छोटे से बीज ही हैं। हमारी अंगडाई हमारे सतत प्रयास के रुप में हैं। हमारी हरियाली कुछ पा-कर दुसरी आंखों की चमक बनना हैं। हमें भी बँट जाना हैं। किसी के दिल में किसी के दिमाग में..! ये समस्त को स्पर्श करने की बात हैं। ये जीवनयात्रा भी बीजयात्रा की घटना जैसी नहीं लगती हैं ? मैं कोई निष्कर्ष पर नहीं आता…मात्र एक विचार रखता हूं। ये महसूसी का बयान मात्र हैं !!
आनन्द विश्व सहेलगाह में आज समय की धीरी धडकन को सुनना हैं, तब कोई ह्रदय का धडकना बडा अच्छा लगेगा। ये बीज की अद्भुत यात्रा की कहानी को अपने-अपने अंदाज से पढना हैं। तब कोई सुहानी सफर कहानी बनें सामने खड़ी होगी…अपनी खुद की अंगड़ाई से..!! एक कहानी खुद बन जाए तो कैसा रहेगा !?
मैं तो एक वाहक हूं ओर कुछ भी नहीं !!
સરસ વિચાર