Some time hurt with the truth,
but never Comfort with lies.
कुछ समय के लिए सच से दुख होता हैं, लेकिन झूठ से कभी आराम नहीं मिलता।
कभी-कभी ऐसे कुछ वाक्य पढने में आते हैं फिर पूरा दिन सोचने के लिए मजबूर कर देते हैं। प्रयत्न पूर्वक कुछ नहीं होता ये सहज होता हैं। हम इस विचारों को प्रकृतिगत सत्य कहते हैं। The truth is natural. सत्य सहज हैं, सत्य स्वाभाविक हैं। ईश्वर के प्रति प्रेम और प्रकृतिवाद हमें स्वाभाविक मत के लिए सक्षम बनाते हैं। इन बातों का स्वीकार हो या न हो, लेकिन सत्य स्थापित हैं। Leonardo Vinci- का एक मशहूर क्वाॅट हैं ” Nature is the source of all true knowledge.” कुदरत का स्रोत सत्य के ज्ञान के लिए ही हैं।
हमारी भीतरी आवाज को हम ही सुन सकते हैं। यह आवाज सत्यम- शिवम-सुंदरम हैं। सत्य की आवाज सब के भीतर हैं, सबको सही तरीक़े से ये सुनाई पडती हैं। उसमें थोड़ी-सी भी मिलावट नहीं होती, क्योंकि ये सत्यापन हैं। सत्य कटु होता हैं। सत्य को साबित करना कठिन हैं। सत्य की जीत होती हैं लेकिन समयावधि बड़ी लंबी होती हैं। सत्य की स्थापना से न्याय की गरिमा बढ जाती हैं। सत्य से धर्म संस्थापना का आधार अतूट बनता हैं। ऐसी कईं बातों से हम-सब अवगत हैं। सत्य स्वार्थ से परे हैं। जहां स्वार्थ का आचरण आएगा, मात्र स्वार्थ का विचार भी आएगा वहां सत्य की अनुपस्थिति की शक्यता बढ़ जाएगी।
महात्मा गांधी का सत्य हमारे सामने हैं। उस महात्मा ने अपना जीवन प्रयोगात्मक ढंग से जीया हैं। खाने-पीने से लेकर रहन-सहन वर्तन सब पर नियंत्रित काबू का प्रयास हैं। निजी व्यवहार से परे उन्होंने राष्ट्र का विचार किया है। जीवन का विचार किया हैं। “स्व” की उन्नति का विचार क्या हैं। बापू येसे ही नहीं बनें वो..! पूरे विश्व में सत्य की बात आती हैं तो उनको सविनय याद करना पडता हैं। सत्य स्थापन के बापू के प्रयास से उनके वैयक्तिक जीवन की साधना भीतर सुन्दरता के प्रति बढ गई। आज बापू का मार्ग प्रशस्त हैं। उनका जीवन एक संदेश बन गया। दुनिया को उन्होंने “सत्य और अहिंसा” के मंत्र दिए। झूठ की बात रखने से प्रयास पूर्वक दूर रहता हूं…विषय प्रस्तुति को गलत न समझना।
सत्य अनादिकाल से ही हैं। सृष्टिकाल का एक अनमोल सत्व सत्य ही हैं। प्रकृति तो वैसे भी सत्वशील हैं। धीरे धीरे समझ में आता हैं, जो सत्य हैं वही सत्वशील हैं। इससे आगे मुझे ये भी समझ में आता है कि प्रेम हैं वहां सत्य होगा। प्रेम है तो स्वार्थ गायब ही होगा। जहां स्वार्थ नहीं वहां सत्य तो होगा ही…! हैं ना बडी अजीब बातें…ये अजीब ही जीवन का आनंद हैं।
मनुष्य जन्म वैचारिक-बौद्धिक कर्मकता का संचरण हैं। कई लोग अपने हिसाब से जीवन की सार्थकता क्या हैं ? इसके बारे में ज्ञान बांटते हैं। शब्द-विचार को वर्तन में परिवर्तित करना थोडा कठिन हैं। तो हम करें क्या ? मार्ग एक ही बचता हैं भीतर को सुनने का..! Inner voice is melodious. सत्य की रणक और प्रेम की खनक को ध्यान से सूनने का प्रयास करें। अपने मार्ग अपने-आप प्रशस्त बनेंगे। लोग उसे नया मार्ग कहेंगे, लेकिन सत्य और प्रेम की परीभाषा चिरकालिन हैं। इसे कभी समय के बंधनो में नहीं बांधा जा सकता…!
इति सिद्धम् ।
👌🏻
Satyam shivam sundaram