Creative life looking gentle.

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 रचनात्मक जीवन की सौम्यता लाजवाब ही होगी।

कैसे बनाएं ऐसा चरित्र ? किसके पास से सिखे ?
Creative बनते कैसे हैं ?

विश्व में कईं फिलसूफों ने अपनी अपनी बात रखने का प्रयास किया हैं। जीवन-दृष्टि से जो कुछ सिखा, अपने अनुभव में जो कुछ ठीक लगा। व्यक्ति और समाज के लिए जो कुछ फायदेमंद लगा। उनको लगा की मेरी कहीं बातों से मानवीय मूल्यों का अवतरण हो सकता हैं। वैयक्तिक जीवनोत्कर्ष हो सकता हैं। ऐसी कईं बातों का, विचारों का संचरण कईं मानव निमित्तों से हुआ हैं। ये हमारी सुसंस्कृत होने की पक्रिया हैं। हमारे बौद्धिक कदमों की दमदार चाल हैं। हमारी नई सोच की उडान हैं ये !! सही हैं न !?

The George Barnard shaw
आज मैने “ज्योर्ज बर्नाड शो” की अद्भुत बात रख रहा हूं। स्वयं की खोज से उपर हमारी भीतरी रचनात्मकता को प्रकट करना हैं। जीवन में से स्वयं की खोज सामान्य घटना थोडी हैं ? लेकिन इससे उपर व्यक्ति की पराक्रमित कार्यक्षमता का प्रकट होना हैं। जिंदगी से यहीं तात्पर्य हैं..अपने आप की अनोखी छवि पेश हो। जैसी भी हो, पर छवि अपनी खुद की हो !! उस छवि से मुझे आनंद मिले !! 

अपनी खुद की भी एक सोच होती हैं। सबमें एक सच्चा फिलोसोफर छिपा हुआ है। उसको हम मन- मस्तिष्क-हृदय या आत्मा भी कहते हैं। वो आप पर छोडता हूं कि आप उसे क्या कहते हैं। मैं नम्रतापूर्वक उसे “भीतरी आवाज” कहकर आगे चलता हूं। कोई विचार या वर्तन पर तटस्थतापूर्ण, कोई बाहरी दबाव के बिना सोचना और तथ्यात्मक सत्य को पाना..યतत्पश्चात जो आवाज सुनाई देती हैं, उसके कहें शब्दोच्चार पर चल पडना। अपनी जिंदगी को उस राह पर चलाना आनंददायक जरुर होगा। उसके कितने बेनिफिट हैं? उसे गिनना मेरे बस में नहीं हैं। मैं तो इतना ही कहूंगा…”जीना अच्छा जरूर लगेगा..!” साथ अपने जीवन से खुशी पाने वालों की संख्या बहुत अधिक होगी।

समष्टि के कईं किरदारों की अद्भुत महेंक होती हैं। वो जहाँ जाते हैं, उनकी समदृष्टि का सहज प्रकटीकरण हो ही जाता हैं। उनकी बातों में, उनकी आवाज में जादू सा आकर्षण होता हैं। कोई प्रयासरत न देखना चाहे, न सुनना चाहे फिर भी…नजर तो वहाँ जाती ही हैं। ये किरदार की सुगंध हैं। कुछ नया किये बिना या मानवीय सभ्यता के गौरव रुप वर्तन के बिना गुनगुनाहट नहीं होती। लेकिन उसके लिए प्रशिक्षण शिविर काम नहीं लग सकती। ईश्वरीय सृजन का आनंद और दूसरों की खुशी व पीड़ा को महसूस करना होगा। इसमें ड्रामा हरगिज नहीं चलेगा। भाईसाहब, एक फिल्म तो खुद ड्रामा होने के  बावजूद दम नहीं तो नहीं चलती !! ये तो जिंदगी हैं !!

Definitely friends, We are looking gentle !!


मैं तो इतना सीखा हूँ… अपने भीतरी मनुष्य को प्रकट होने देना चाहिए। बस, ओर क्या ? उस किरदार का नाम तो लोग देंगे! “बस हमारी  process of creating by GOD’S hands…होनी चाहिए।” इस वाक्य को दो बार पढना अच्छा जरूर लगेगा। ईश्वर के हाथ से संवरना…! 

“आनंदविश्व सहेलगाह” ब्लोग में आज थोड़ा-बहुत सोच-विचार comment के रूप में आपके द्वारा हो…तो कैसा रहेगा !?

आपका ThoughtBird.🐣

Dr.Brajeshkumar Chandrarav ✍️

Gandhinagar, Gujarat.

INDIA.

dr.brij59@gmail.com

09428312234

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