रिश्ते-संबंध संवेदना के आधार पर ही जीवंत हैं…!
दमदार जीना है तो रिश्ते भी दमदार बनानें होंगे।
“कुछ रिश्ते मुनाफा नहीं देते लेकिन जिंदगी को अमीर जरूर बना देते हैं” पढते ही कुछ अच्छा लगा !! एक हिन्दी आल्बम सोंग कई दिनों से मुझे अपना विषय दे कर कुछ लिखवाना चाहता था। फिर क्या..? संवेदना की बात लिखनी ही पडी..! “बधाई हो बधाई” का पामेला जैन के द्वारा गाई हुई दमदार सोंग की कुछ पंक्तियाँ…आपके लिए !!
कभी कभी शब्दों में भी जान आ जाती है, तो सुनना- पढना अच्छा लगता है। मुझे तो लगता हैं, शब्दों के बीच भी कोई गहरा रिश्ता होगा। तभी तो शब्दों का मिलन कमाल बन जाता है। वाह !! जैसे अल्फाज का निकलना यूहीं नहीं होता, ये भीतरी करामात हैं। ये कोई ताल हैं, जो सहज ही प्रकट होता हैं।
माफ करना, मैं हमारें रिश्तों की बात करते करते शब्दों के रिश्तों की उलझन में पड गया। ये रिश्तें भी कमाल की चीज हैं। रिश्ते-संबंध दमदार है तो हमें खिंच ही लेंगे। चाहें वो शब्दों के, प्रकृति,प्राणी-पशु के या तो मनुष्य के बीच के हो। रिश्तों को धडकने के लिए संवेदना की आवश्यकता कितने पैमाने के तौर पर हैं..?! वो मुझे पता नहीं। लेकिन वो सांसो की तरह जरूरी हैं।
मगर सच्चे-अच्छे रिश्तों का मुनाफा बेशुमार होता हैं। कहीं ये दिखता हैं, कहीं नहीं भी! कहीं सारी जिंदगी अमीरात बन जाती हैं। जिन लकीरों का मिलना तय हैं, वो लकीरें एक दूजे के अनोखे बंधन में गुल मिल जाती ही हैं। ईमोशन्स के बिना संबंध का निर्माण होना शायद संभव ही नहीं। लेकिन जब संवेदना की तर्ज से उपर तर्क का विजय होता हैं तब रिश्तें उलझनें बन जाते हैं। मुझे उलझन के बारें में नहीं लिखना। क्योंकि मुझे सुलझन से प्यार हैं !!
आज सबसे अमीर वो है जिनके पास अच्छे रिश्तें हैं। कोई हमसे रिश्ता झोडना चाहें, कोई रिश्ते-संबंध को कायम करना चाहें उससे बड़ी लाजवाब बात क्या हो सकती हैं ? रिश्ते-संबंध को बखूबी निभाना भी एक जिम्मेदारी हैं। आज खुलेपन से जीना बोझिल बन गया हैं। अपनी भीतरी आवाज के साथ दूसरी आवाज की सरगम बजे तो एक बहतरीन रिश्ता आकार सजता हैं। ईश्वर की पारस्परिक प्रेम बंधन की अद्भुत दुनिया का ये पैगाम हैं। ये कईं समत्वशीलों की आवाज हैं। ईमोशन्स हैं तो रिलेशन्स हैं, बाकी…लोग जिसे जिंदगी कहते हैं मैं उसे गुजारा कहता हूं। आप क्या कहेंगे ?
मनुष्य के रिश्तों के बारे में, क्या लिखा जाए ? मुझे तो प्रकृति की हरएक हरकत में रिश्ता दिखता हैं। उसे देखकर ही मैं खुश हो जाता हूं। एक ही उदाहरण… धरती की गोद में एक पौधा पलता हैं, धरती के रंगों को चूसकर, धरती की ही महेंक को पी कर एक पौधा पलता हैं। वो छोटा-सा पौधा जानता हैं खुद को..अपनी हरियाली के रंग को, इसलिए वो अपने पूरे अस्तित्व को ही धरती को सौंप देता हैं। तुं हैं तो मैं हूं। तुझसे छूट जाने से क्या है मेरी हसरत ? एक छोटा-सा पौधा सब जानता हैं…इससे तो ये रिश्ता क्या कहलाता हैं… हमारी समझ में सहज ही आ गया !! बराबर है न ?
बस, सबकुछ कह देनें पर भी दिल न भरें, बार बार मिलने पर भी मन न भरें। खुद को खाली कर देने की…कभी खत्म न होने वाली बातें करने की उम्मीदें ही तो…जानदार-शानदार- दमदार रिश्तें बनाने के बादल समझो !! दिलों की पाठशाला का अनोखा चैप्टर..रिश्ते-संबंध !!
आनंदविश्व सहेलगाह में कुछ नटखट बातों की रिमझिम फुहार के साथ….!
Good thought
बृजेशभाई बहुत खूब।
आपके साथ आपकी कलम का जादू भी निखरता जाता है।
अपने आप को पेश करने में विचारों की स्पष्टता लयबद्धता और खुलापन शब्दों में ही अनुभूत होता दिखता है। आपकी लिखनी में आदेश नहीं लेकिन अनुशासन दिखता है। आपके शब्दों में विनम्रता प्रगट होती है। आपका उद्देश्य अन्य लोगों को प्रभावित करना नहीं किंतु प्रवाहित करना दिखता है।
आपकी लिखनी का प्रवाह यही गति, धैर्य और सातत्यपूर्ण तरीके से आगे बढ़े ऐसी अनेकानेक शुभकामनाओं के साथ आपका परम मित्र
जितेंद्र पटेल
B 66 nandanvan township
मोडासा
I'm very thankful my friend.
Wonderful. Worth reading.. keep going sir
Vah bahut khoob