Rangalo and Rangali is a married Couple.
Live with Fully Understanding.. funny Character of Indian Drama.
विश्व में कला के आविष्कार में प्रथम महाकाव्य और नाटक का अवतरण हुआ था। भारतीय संस्कृत साहित्य में से कईं उत्तमोत्तम कलाकृतियां हमें प्राप्त हुई है। ग्रीक साहित्य-रोमन साहित्य मैं भी नाट्यकृतियां का दमदार प्रवाह उद्भवित हुआ था। ड्रामा-नाटक-एकांकी-प्रहसन-भवाई ईन शब्दों के साथ रीयल कैरेक्टर्स से लाइव प्रसारण अवतरित होता रहा। इससे लोगों का मनोरंजन खूब हुआ। बादमें नाटक ने उत्क्रमित होते हुए फिल्मांकन का रुप धारण किया। आज थियेटर और मल्टीप्लेक्स से आगे वेबसिरिझ का समय आया हैं।
आज के ब्लोग में भवाई या फिल्म की बात नहीं करनी। साथ नाटक की भी बात नहीं करनी। मुझे तो बात करनी है, भारतीय ड्रामा मनोरंजन के सिरताज व अमर चरित्र रंगला और रंगली की…! भारतीय रंगमंच की दुनिया के ओपनिंग बैट्समैन रंगला और रंगली की !! मनोरंजन के कोई संशाधन नहीं थे तब, मानव रंजन की परंपरा भवाई के द्वारा संभावित हुई। इसमें रंगला और रंगली का चरित्र आता हैं। दोनों शादीशुदा हैं। भवाई वेश की शुरुआत में रंगला और रंगली का ड्रामा खूब चलता था। वे लोगो को हसाते भरपूर मनोरंजन करते और प्रस्तुत होने वाले कथानक की बात छेडते..! इन दोनों चरित्रों को विचित्र पोषाक के कारण व हंसी-खुशी के अंग-अभिनय के कारण हम सब ज्यादातर हल्के में लेते रहे हैं।
गुजराती भाषा का भवाई संदर्भ में एक मशहूर गीत हैं।
लांबो डगलो मूछो वांकरी शिरे पागरी राती,
बोल बोलतो तोळी तोळी, छेलछबीलो गुजराती,
तन खोटुं पण मन मोटुं..!
छे खमीरवंती जाती…!!
रंगलो और रंगली तो साइड कैरेक्टर्स हैं, ऐसा हम सहज मानते हें। मजाक वालें चरित्र, इसके आलावा कुछ भी नहीं। मूर्खतापूर्ण व्यवहार मगर आज कोई कारणवश इन दोनों चरित्रो के बारें में सहज ही सोचना हुआ। आज मैंने जो कुछ सोचा, जो मेरी समज में आया वो आपको सुनाता हूँ…कहता हूँ। मन की विशालता की बात बडी सुहानी हैं। मासूमियत से कही दमवाली बात को सेल्युट। ” ता थैया थैया ता थैई “
रंगलो और रंगली पूरे विश्व के दाम्पत्य जीवन के प्रतीक हैं, Marriage life लग्न जीवन क्या हैं ? क्यों हमें दो व्यक्तिओं को जीवनभर साथ चलना हैं ? नाटक में पात्र रियलिस्टिक बने रहे तो अच्छा लगता हैं, जीवन में कब ?! हंसी-खुशी का आधार लग्न हैं। कभी-कभी मूर्खतापूर्ण आपसी व्यवहार के अवसर का आनंद ही लग्न हैं। लग्न यानि एकोत्सव, लग्न यानी जीवन का मंगल प्रवेश…नये अनुभवो का मेला हैं लग्न..! अनजान व्यक्ति के साथ जीवनभर का नाता बनाकर जीना हैं। युगों से मानवसृष्टि में ये परंपरा रही हैं। इसे सामाजिक ढांचे में ढालकर एक व्यवस्था कायम हो गई…marriage life. दो विजातीय व्यक्तिओं के मेल का जीवंत ड्रामा, इसे हर कोई अपने ढंग से, अपने रंग से, अपनी अपनी सोच के मुताबिक जीता हैं। ये संसार का बडा वैविध्य हैं। ईश्वर की कठपुतलियों का अपना अलग ड्रामा। मनुष्य के रुप में ईस भूमिका में हम रंगला-रंगली हैं क्या ? बेशक, मुझे तो लगता हैं। आनंद विश्व की रंगभूमि में इन “कपलचरित्र” का अनुसरण लाजवाब रहेगा। सही हैं न ? “ता थैया थैया ता थैई “
ईश्वर का अद्भुत सृजन स्त्री-पुरुष हैं। बायोलॉजिकली इन में कुछ न कुछ असमानता हैं। फिर भी पारस्परिक अवलंबन का आनंद इनमें ही समाहित हैं। जन्म से मृत्यु तक की सफर में ये दोनों का मिलन प्राय: ही केन्द्रभूत हैं। शायद मैं लग्न की फिलसूफी पेश कर रहा हूँ…so sorry ! लग्न जीने का दूसरा नाम हैं। यहां रंगमंच दिखाई नहीं पडता फिर भी हैं !! ईसीलिए हम रंगला रंगली भी हैं… सोचो तो, मानो तो ! “ता थैया थैया ता थैई “
आपका ThoughtBird 🐣
Dr. Brijeshkumar Chandrarav.✍️
Gandhinagar, Gujarat.
INDIA
dr.brij59@gmail.com
09428312234
વાહ….. આનંદ હી આનંદ…
👌👍👍
Nice bro
Please write name with comment. because it's a unknown seen.
Name please
Nice Dr Brij.
Nice Dr Brij