Be less curious about people and more curious about IDEAS – Marie curie.
मॅरी क्युरी पाॅलिश और फ्रेंच भौतिकशास्त्री,रसायणशास्त्री और नारीवादी महिला थी। उन्होंने किरनोत्सर्ग पर संशोधन किए थे। वो नाॅबल पुरस्कार जीतनेवाली प्रथम महिला थी। साथ ही दो बार नाॅबल पाने वाली भी वो प्रथम हैं। पॅरिस युनिवर्सिटी की वो प्रथम महिला के रूप में काम करनेवाली प्रोफेसर थी। ७ नवम्बर १८६७ में पाॅलेन्ड में उनका जन्म हुआ था।
कईं शब्द अनायास ही हमारी नजरों के सामने पडते है। लेकिन कुछ शब्द-विचार सोचने के लिए जरूर मजबूर करते हैं। जिज्ञासावश ही जिज्ञासा-उत्सुकता के बारें में सहज ब्लॉग लिखना प्रारंभ हो गया..!
Thanks marie Curie for ideas…!!
क्युरी ने जीवनभर अपनी कुतूहलता को पोषित करते हुए विश्व का मार्गदर्शन किया हैं। आपकी जिज्ञासा विश्व के लिए उन्नति के मार्ग ले कर आई। उनका बेहतरीन क्वाॅट ” लोगों के लिए कम और विचार के लिए ज्यादा उत्सुक बनें।” मॅरी क्युरी ने विज्ञान की कईं शक्यताओं का विचार किया, कईं अदृश्य संशोधन उनकी उत्सुकता के नतीजे हैं। दुनिया में सैद्धांतिक रूप से स्थापित होना है, तो जरा हटके चलने की आदत डालनी होगी। सृष्टि महसूसी का आलम हैं। हम क्या महसूस करते हैं ? हम क्या अनुभूत करते हैं ? हमें कौनसी चीज जिज्ञासावश अवस्था में खींचे जाती हैं ? इन प्रश्नो के उत्तर हमारे आनेवाले जीवन का मार्ग चुनते हैं। लोगों को सुनते रहेंगे तो हमारी भीतरी उत्सुकता मृतप्राय हो जायेगी।
हम जैसे भी हैं। कुछ करने की उम्मीद लिए प्रतिबद्ध हैं तो सही मार्ग पर चल रहे हैं। में उसको ही आनंदमार्ग कहता हूं। जीवन ऐसी कोई सहेलगाह पर बीते…अपनी पसंद के रास्ते पर… जो काम मुझमें थकान न लाने दे। जो काम मुझमें भीतरी आनंद का संचार करें। वो काम हमारी उत्सुकता का समाधान हैं। वो काम हमारी क़ाबिलियत को आकार देने सक्षम हैं। ईश्वर की मर्जी का शायद यही मुकाम होगा। हमें अपनी जिज्ञासा को अपनी उत्सुकता को खुद ही ढूंढकर स्वाभाविक मार्ग को चुनना हैं।
विश्व के कईं चरित्रों ने हमें एनकेन प्रकारेण मार्गदर्शित किया हैं। उनके विचार के अनुसरण में कल्याण का स्थापन होता रहा हैं। सृष्टि का हरेक बालक जन्म से ही जिज्ञासा के बंधन से बंधा हुआ हैं। हमारी ये मूलभूत विरासत कहां खो जाती हैं ?? सबकी अलग ओर सबकी अपनी अंदरुनी ताकत…सबका अपना ईश्वरीय वरदान कहीं खो जाता क्यों हैं ? अपनी आंखे बंध करके एक बार जरुर इसपर विचार करना। शायद उत्सुकता उछलकर बहार निकलने की कोशिश करें !!
अपनो में जीना हैं, साथ खुद में भी जीना हैं। अपने ही कानों से अपनी ही आवाज सुनना कठिन कैसे हो सकता है !?
चलें….कुछ ऐसी आवाज को ढूँढने…!!
आपका ThoughtBird
Gandhinagar,Gujarat.
INDIA.
dr.brij59@gmail.com
09428312234