तुं सही मैं गलत !!
तेरे कारण तो मैं निश्चिंत हूं !!
ये स्वीकार जहां हैं वहाँ मित्रता बडी खूबसूरती से
Friendship is the best medicine for happiness.
मित्रता बडी खूबसूरत होती है। जहाँ मित्रता पलती हैं, वहाँ खूशीयों के आशियाने सजते ही रहते हैं। मित्रता यादों का मेला हैं। जिनके साथ मित्रता हैं उनके साथ बनी छोटी-बडी घटनाएं कायम याद रहती हैं। याददाश्त की भी एक मर्यादा होती हैं। लेकिन उस मर्यादा को लांघकर यादों का कारवां जहाँ बेशुमार बनता हैं… मित्रता वहाँ साँस लेती हैं। धडकन बनके दो दिलों में एक ही साथ के धबकार बन जाती हैं।
हमारे सामने मित्रता के कई उदाहरण प्रस्तुत हैं। इतिहास के पन्नों में कई कहानियां मित्रता की खूबसूरती को संजोए हुए हैं। ईश्वर ही सख्य हैं, ईश्वर ही संबंध हैं। ईश्वर ही निमित्त हैं। ईश्वर अदृश्य होकर भी किसी न किसी रूप धारण कर हमारे जीवन को “आनंद फुहार” से भर देता हैं। मनुष्य जीवन इन्हीं सत्वों से तो बेशुमार होता हैं। मित्रता के तत्व को ईश्वर ने बडी मासूमियत से घटित किया होगा। एकमात्र मित्रता ही तो हैं, जिसे अबाधित संभावनाएं मिली हैं। मित्रता की जीवंतता कहीं भी प्रकट हो सकती हैं।जहां स्त्री-पुरुष,जाति-धर्म,ज्ञान-अज्ञान,धनधान्य की मर्यादा कुछ भी नहीं हैं। वहां हैं एकमात्र सूकून, निर्दोष मस्ती की हरकतें, सुख और दुख की एकरूपता, साथ जीये कुछ पलों की बेशुमार यादें और बातें… !!
मित्रता असंतोष से आकारित हैं। कभी कभार अवगुण में जीने का मजा मित्रता देती हैं। महाभारत भी अद्भुत मैत्री की कहानियों संग्रहित हैं। दुर्योधन और कर्ण की अनमोल मैत्री की बात अनन्य हैं। पराक्रम की कदरदानी से शुरु हुई मैत्री रक्तसंबंधों की परवाह किए बिना एक ही गति में बहती चली जाती हैं।जब कर्ण को पता चला की मै तो ज्येष्ठ पांडव हूं। मैं ही हस्तिनापुर का राजा बनूंगा। लेकिन मित्र के विश्वास को ठेस न पहुंचे… स्वार्थ का नामोनिशान न हो… बस इसको बनाए रखकर जीना ही मैत्री हैं। दूसरी तरफ अपने मित्र के प्रति सदा समर्पित दुर्योधन हैं, कर्ण का गौरव-सन्मान ही दुर्योधन की मैत्री हैं। मुझे लगता हैं, कर्ण ने एकबार अपने मित्र दुर्योधन को युद्ध को लेकर समझाया होता तो वो मान ही जाता। लेकिन ऐसा क्यों नहीं हुआ…? मित्रता मित्र से निभाई जाती हैं उसकी ईच्छा-आकांक्षा से हरगिज नहीं। दुनिया के विभिन्न संबंधों को निभाए जाने की कर्मकता हैं, वर्तनी हैं। लेकिन मैत्री बंधनों से मुक्त हैं, परंपराओं से मुक्त हैं। मैत्री जहाँ आकार सजती है वहाँ नया आकार बनाती ही हैं। वो हैं पारस्परिक अनुबंध का आकार…सामीप्य का आनंद ही तो समाहित है मित्रता में…!!
आनंदविश्व सहेलगाह में आज मैत्री की बात रखकर खूशी महसूस करते हुए अपने शानदार-जानदार-मित्रों को ब्लोग समर्पित करता हूं। शायद मैं कुछ लिख पा रहा हूं उसकी वजह भी आप हो। तेरे नाम आज का काम..!
आपका ThoughtBird 🐣
Dr.Brijeshkumar Chandrarav✍️
Gandhinagar.Gujarat
INDIA.
dr.brij59@gmail.com
09428312234.
Very heart touching words my dear….
Very nice 👍👍
आप जैसे दोस्त है तो हृदय में कुछ हलचल मची रहती हैं।
आभार रमेशभाई आप हमेशा ब्लोग पढते हैं कमेन्ट भी करते हैं…👏
દુનિયા ની સૌથી મહામૂલી અને બેશ કિમતી ચીજ એટલે સાચો મિત્ર
Good