प्रेमशक्ति का महान स्रोत ईश्वर ही हैं !! 💕
युवाशक्ति को शब्दशक्ति- विचारशक्ति और प्रेमशक्ति से कैसे भर सकते हैं ?!!
आनंदविश्व की वैचारिक परंपरा में हम चलते जा रहे हैं। अच्छे विचारों की कुछ न कुछ असर होती हैं । विचार शब्द का प्रगट स्वरूप हैं। शब्द की भी आराधना व साधना होती हैं। विश्व की कई भाषा सिखने के बाद उसके साथ प्रकटीकरण – प्रस्तुतीकरण का काम लेना पडता हैं। ईश्वर ने दी हुई बुद्धि से उसका आकलन करना पडता हैं। मनुष्य के रूप में हम इस भाषाविज्ञान से मानवमन को बौद्धिक रूप से प्रतिबद्ध करने का कार्य करते हैं। मनुष्य के रुप में अच्छें विचार स्थापित करना भी उत्तमता कहलाएगी।
आज हम युवाओं को ध्यान में रखकर दो शब्दों के बारें में बात करते हैं। लक्ष्य और ध्येय। लक्ष्य प्राप्ति करना और ध्येय प्राप्ति करना उसमें तार्किक व तात्विक भेद हैं। लक्ष्य भौतिकता एवं व्यक्ति केन्द्री विचार हैं। मैं कुछ बनने का लक्ष्य रखता हूँ तो सफलता निःसंदेह मिलेगी, ये निर्विवाद बात हैं। लेकिन मैं कुछ प्राप्त करने का ध्येय रखता हूँ तो सफलता मिलने की शक्यता दो गुनी बढ़ जाएगी। क्योंकि ध्येय समष्टि के कल्याण भाव को और मानवजीवन के सेवाभाव को दर्शाता हैं।
आनंदविश्व के लिए युवाशक्ति की सोच हमसब को एक नई पहचान दे सकती हैं। विश्व को नई वैचारिक ऊंचाई पर ला सकती हैं। ईश्वर की महान सृष्टि में आनंद की सहलगाह के लिए सदा साथ आपका डॉ.ब्रजेशकुमार 😀 💞
Belief in Ishvara and self belief makes the world full of joy.