Dr Brijesh Chandrarav

Pinnacle of dedication.

“दो चरित्रों की समर्पण पराकाष्ठा”


देवी आप कौन हैं ?

भगवन् मैं आपकी पत्नी हूँ।

आप कब से यहाँ हैं ?

करीबन बारह साल से..!

आप इतने साल यहाँ क्या कर रहे थे ?

बस,आप की देखभाल।

आपने अपना पत्नी का हक जताया नहीं ?

मुझे विश्वास था एक न एक दिन तो आप का कार्य समाप्त होगा ना !

आपका नाम क्या है ?

भामती !

में कई दिनों से इस ग्रंथ के नाम के बारें में सोचता था। आज मिल ही गया..!

कौन-सा नाम मिला ?

“भामती”

ये संवाद प्रसिद्ध दर्शनशास्त्री वाचस्पति मिश्र और उनकी पत्नी के बीच के हैं। लग्न जीवन के बारह साल तक वाचस्पति मिश्र अपनी लेखन तंद्रा में मनमग्न थे। उनको बाहरी दुनिया में क्या हो रहा है, कुछ पता नहीं था। बारह साल पहले विवाह के बंधन में बँधी स्त्री अपने पति के कार्य के प्रति आशावंत रही। एक दिन आया जब वाचस्पति का कार्य संपन्न हुआ। उस ग्रंथ का नामकरण ही उन्होंने “भामती” कर दिया। हैं न बडी दिलचस्प बात..!

Special thanks to Rekha Misra for beautiful picture 

वाचस्पति मिश्र मिथिला के ब्राह्मण थे। जो भारत और नेपाल सीमा के निकट मधुबनी के पास अन्धराठाढी गाँव के निवासी थे। इन्होने “वैशेषिक दर्शन” के अतिरिक्त अन्य सभी पाँचो आस्तिक दर्शनों पर टीका लिखी है। उनके जीवन का वृत्तान्त बहुत कुछ नष्ट हो चुका है। ऐसा माना जाता है कि उनकी एक कृति का नाम उनकी पत्नी “भामती” के नाम पर रखा था। ये प्रसिद्ध कृति व्याकरण ग्रंथ पर आधारित थी।


घटना खत्म हुई। थोडा इतिहास का वर्णन भी..! शायद इतनी छोटी-सी घटना से आपके मन में आनंद की लहर उठी होगी। ऐसा भला होता है क्या ? किसीके मन में ऐसे प्रश्न भी उठे होंगे, किसी के मन में उत्तम भाव भी उठे होंगे। किसी के मन को शायद ये घटना स्पर्श भी न करे। मैं जो है, उसे शब्द चरित करता हूँ। किसीको क्या मिलता है, ये मैं कैसे समझ सकता हूँ ? “आनंदविश्व सहेलगाह” की वैचारिक सफर में मेरा तो ये छोटा-सा निमित्त कर्म हैं।


मुझे लगता हैं ऐसा समर्पण भाव आज भी संभव हैं। जब दो विजातीय व्यक्तिओं के बीच कोई ईश्वरीय आकर्षण कारणभूत बनता हैं। इसके साथ बस जीना हैं..! वो जैसा भी हैं, मुझे उसके साथ रहना हैं। कोई ऐसा बंधन सालों के फासले को उम्मीद में बदल देता हैं। मुझे ये भी समज में आता हैं, कोई समर्पिता स्त्री के कारण ही ये संभव होता हैं। वाकई एक स्त्री पुरुष को बहुत कुछ करने को सक्षम बना सकती हैं। तब पुरुष भी ऐसी स्त्री के लिए अपनी समग्र क्षमता को उसके सामने रखकर स्त्री की समर्पिता दृष्टि को पुरस्कृत करता हैं।


एक विश्वास, एक संबंध साथ समर्पण की अद्भुत मिसाल जब आकार सजती है तो येसी कोई घटना संभव होती हैं। पूरा जीवन समर्पित करने वाली स्त्री को पुरुष अपना सत्वशील कर्म उसके नाम करें ऐसी घटना जहां घटती हैं…वहाँ राधा-कृष्ण की बंसी के सूर प्रकट होते हैं। जीवन में ऐेसा थोडा-बहुत अहसास पालते रहें…जीना कोई अलौकिक वरदान जैसा लगेगा…निश्चितरुप से..!!


आपका ThoughtBird 🐣

Dr.Brijeshkumar Chandrarav

Gandhinagar, Gujarat.

INDIA.

dr.brij59@gmail.com

+919428312234.

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