Dr Brijesh Chandrarav

Theater of creation.

 सृष्टि का रंगमंच…!

ईश्वर-सृजला, ईशानंदा, ईशस्नेहा…सृष्टि !!

ईश्वरीय सृष्टि के हम अंश, मुट्ठीभर मिट्टी से बना एक नायाब किरदार…! सृष्टि की संपूर्ण विविधता में हम मनुष्य सबसे उपर हैं। शायद ईश्वर हमसे कुछ करवाना चाहते हैं। हमारे निमित्त तले वो लाजवाब कारनामें करते हैं। ईश्वर ने मनुष्य की श्रेष्ठता शायद इसी उम्मीद पर बनाए रखी हैं। मनुष्य के रुप में हमें जो किरदार मिला है, उसे बखूबी निभाने का दमदार प्रयास ही हमारा प्राकृतिक आनंद बन सकता हैं। क्योंकी हम सृष्टि के रंगमंच की कठपुतलियां से ज्यादा कुछ नहीं।  William Shakespeare says, “The world is a stage and we are all puppets of this beautiful show called LIFE.”



कुदरत का दिया हुआ Role, ईश्वर का बनाया चरित्र, उनके ही संवाद और उनकी दी हुई समय मर्यादा। उनकी दी हुर्ई बुद्धि से अपने-अपने किरदार को रुआबदार बनाना। हकीक़त ये है कि ये रुतबा भी ईश्वर की कमाल हैं।

सुबह होती है, सूरज की किरनों से धरती प्रकाशमान हो उठती हैं। माऩों सृष्टि के रंगमंच पर सभी जीव-जंतु, मानव-पशु-पंखीओं के पाठ शुरु हो गए। संतोष और असंतोष से भरी भागदौड के बीच कईं जिंदगियां अपने साँसों की गति को तेज करती हैं। कोई खेलता है, कोई गाता है, कोई नाचता है, कोई अपने आप को लूपाता-छूपाता हैं। कोई बहादुरी के स्वांग सजाता हैं। कोई कपट के रंग लेकर खडा हैं। कोई बेवफाई से नाता झोड लेता हैं। कोई एक दिन की रोटी के लिए कोई पुरखों तक चलने वाली धन दौलत के पीछे पडा है। कोई निरांत के श्वास ढूँढता हैं। किसी को नशा है सत्ता का…कोई नशे में ही हैं। ये हैं जिंदगी की रफ़्तार..! सृष्टि के रंगमंच पर ऐसे लाखों दृश्य अपने-अपने पराक्रम को प्रकट करते हैं। इसे मैं अपने अस्तित्व का प्रेजेंटेशन कहकर आगे बढ़ता हूं।

सृष्टि के रंगमंच का सबसे बेहतरीन किरदार कौन-सा हैं ?
स्वयं ईश्वर भी किस तरह के किरदार से वाकई प्रसन्न होंगे ?

वो किरदार, जब भी रंगमंच पर फॉक्स्ड होता है, तब तालियों की बौछार होती हैं। जब कोई किरदार किसी दूसरें के संग अलौकिक संबंध निर्माण करता हैं। मैं तो कहता हूं…ये भी ईश्वर की ही कोई करामात होगी। जब सूरज निकलता है…और सृष्टि के दो पात्रों का मिलन एक उत्सव बन जाता हैं। उनके चेहरें का स्मित समर्पण प्रकट करता हैं। दो चरित्रों के संवाद एक होने लगते है। एक दूसरों के सपनों में एकत्व का संचार होने लगता हैं। एकमेव पारस्परिक सख्य का दृश्य आनंद ईश्वर को प्रसन्न करने वाला होगा। सृष्टि के रंगमंच का ये बहतरीन किरदार हैं। शांत-निर्मल झरनों के बहाव का संगीत व पावित्र्य इन किरदार में से सहज ही प्रकट होंगे। प्रेमतत्व से बंधा ईश्वर का पसन्दीदा किरदार…!!

सृष्टि के कोई कोनें में दो जीवों का अप्रतिम मिलन संभव होता हैं।  भिन्नताएं एकत्व के मार्ग पर चल पडती हैं। अप्रस्तुत ईश्वर अदृश्य होकर भी दो जीवों के ‘अद्वैत’ का आनंद लेते हैं। ये सृजन भी ईश्वर का ही हैं। उनके आनंद पात्रों के रुपमें कौन पसंद होता हैं ? सृष्टि के कौन-से किरदार पर ईश्वर की अमीदृष्टी पडती हैं, क्या पता !? ये बेमिसाल किरदार वाला फॉर्म्युला गजब का हैं। सृष्टि के रंगमंच का आनंदृश्य…!

“आनंदविश्व सहेलगाह” कुछ  विचार रखकर खूश हैं। शायद ईश्वर ने दिया हुआ ये मेरा किरदार हैं। उसे अच्छी तरह से निभाने की शक्ति भी वो ही देंगे..! ऐसी अतूट श्रद्धा के साथ….!!

आपका ThoughtBird. 🐣
Dr.Brijeshkumar Chandrarav.
Gandhinagar.Gujarat
INDIA
dr.brij59@gmail.com
09428312234

1 thought on “Theater of creation.”

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Scroll to Top