Thinking is never stopping process..!
विचार कभी न रुकने वाली गति…!
जब-तक हैं साँस, जब तक हैं धडकन।
तब-तक हैं… विचारों की शृंखला !!
आनंदविश्व की सहेलगाह कुछ दमदार विषयों पर सहज ही चल पडती हैं, “विचार” एक अविश्रांत कथा हैं। अविरत क्षणों का काफिला हैं। विचार एक गति हैं। विचार एक सुनहरा पडाव हैं। विचार बहतरीन यादों का मेला हैं। विचार है तो हम हैं। विचार है तो हम जीवित हैं। हमारी सांसे चलती हैं, हमारी धडकनें चलती हैं इसका प्रमाण विचार हैं। भले हम विचार को इतनी सहजता से लेते हैं लेकिन “विचार”असामान्य हैं,असहज हैं।
आंख से जो कुछ दिखाई पडता हैं, स्पर्श से जो कुछ महसूस होता हैं, सुगंध बनकर, आवाज बनकर कुछ गूँजता है। भीतर कोई दृश्य आकार सजता हैं। उसका नाम ही तो विचार हैं। विचार से शूरु होती है एक यात्रा। कुछ पाने की यात्रा, जीवन को जीने की और सुनहरे पल सजाने की यात्रा। जब विचार पैदा होता हैं तो खुद को और दूसरों को भी आनंद देता हैं। इस संसार की खुबसूरत घटना ये हैं कि हम विचार से संवृत हैं। प्राणी-पशु भी विचार तो करते हैं लेकिन उसका प्रकटीकरण भाषागत नहीं हैं। संवेदना उनका विचार व्यापार हैं। उनके वर्तन में हम विचार देख सकते हैं।
आज मुझे विचार की बात करनी हैं। साथ ही संवेदना की अनुभूति करने वाले विचार की बात करती हैं। विचार में हमेशा व्यक्ति-वस्तु या स्थल कारण भूत होता हैं। सबसे अच्छा कोई व्यक्ति का विचार हैं। उससे ज्यादा सबसे पसंद वाला साथ…! वो जब विचार बनकर हमारे भीतर दौडता है तो नायाब करिश्मा हो उठता हैं। और वो पसन्दीदा व्यक्ति हमारे विचारों में सबसे बडी जगह रोकता हैं। हमारे मस्तिष्क में उनका बसेरा रंगबिरंग होता हैं। एक विचार में कितना समाया हैं। जो विचार हमारी धडकनों को तेज करता हैं….वो ही जीने का आनंद हैं। वो विचार जीने की वजह भी बनता हैं। जैसे एक व्यक्ति विचार बन गया हो या विचार व्यक्ति !? समझ में न आने वाली ये विचार प्रक्रिया तब सजीव बन जाती हैं। जैसे की उसमें जान आ गई हो…! उस विचार की अहमियत का अंकन करना नामुमकिन हैं।
दोस्तों, में विचार की ही बात कर रहा हूँ। जो मेरे भीतर है वो आपके भीतर भी हैं, फिर भी सबका अलग-अलग हैं। ये विचार हैं, न रूप है न आवाज है। आकार के बिना आवाज के बिना भी सृष्टि के नियमन का आधार हैं।
एक विचार जब बाह्य जगत में अपना रुप धारण करता हैं। तब अस्तित्व की नई मिसाल खडी होती हैं। कोई मूर्त वस्तु का आकार व कोई कला का आविष्कार होता हैं। संसार के बहुधा लोगों को स्पर्श करने वाली और पसंद पडने वाली घटना आकारीत होती हैं। विश्व के कल्याण के लिए कोई सिद्धांत जन्म लेता हैं। सृष्टिकाल मे नित्य जो कुछ बदलाव आते हैं, ये सब विचार के कारण संभवित होते हैं। ये क्रम सनातन हैं। ये युगों से चली आ रही अदृश्य विचारयात्रा हैं।
सजीव का सहजीवन विचार बीज के कारण संभावित हुआ हैं। सहजीवन का पारस्परिक व्यवहार पारिवारिक होता गया। प्रेम संबंध का निर्माण होना भी विचार के माध्यम से ही संभव हैं। संवेदन का आदान-प्रदान भी विचार की ही जीत हैं। ईश्वर ने विचार के बीज मंत्र से सृष्टिकाल को चैतन्य से संवृत कर दिया हैं। संसार में सबसे बुद्धिमान मनुष्य विचार के कारण ही दु:खीराम है,सुखीराम भी हैं। इसीलिए विचार प्रक्रिया का श्रेष्ठतम व्यापन सबके लिए जरूरी हैं। हमारे लिए तो सबसे ज़्यादा !!