Dr Brijesh Chandrarav

स्वाध्यायां न प्रमद:।।

 ।। हरेर्नामैव केवलम् ।।

मधुरं मधुरेभ्योऽपि मंगलेभ्योऽपि मंगलम् ।
पावनं पावनेभ्योऽपि हरेर्नामैव केवलम्  ।।

हरि का नाम ही मधुर से भी मधुर, मंगलमय से भी मंगलमय और पवित्र से भी पवित्र हैं। कैवलाष्टकम् में ईश्वर की ये केवलता को निर्दिष्ट किया हैं। बहुत ही सहज भाव से केवल तुं ही है… सर्व कर्ता-हर्ता-धर्ता का आत्मिक स्वीकार गीत हैं। हमारी सनातन संस्कृति की यही आवाज हैं। हमारा जिवनीक तत्त्वज्ञान यही हैं।



अभी थोडे दिन पहेले भावनिर्जर स्वाध्याय परिवार के संवतोत्सव कार्यक्रम में उपस्थित होने का अवसर मिला। परम पूज्य पांडुरंग शास्त्री दादाजी के तत्त्वज्ञान का कोई पर्याय ही नहीं हैं। मानव-मानव का दैवीय संबंध निर्माण करके भीतर के मनुष्यत्व का गौरव दादाजी ने सिखाया हैं। पूरे विश्व को नयेपन का अहसास दादाजी ने करवाया हैं। ईश्वर के साथ का उत्कृष्ट संबंध गीताकार कृष्ण की भांति समझाया हैं। भक्ति दुर्बल नहीं हैं, भक्ति स्वाभिमान का कार्य हैं।

🤔  ईश्वर के साथ सख्यता से अनुस्यूत कैसे रहा जाय ?
🤔  ईश्वरीय स्पर्शानुभूति का अलौकिक आनंद क्या हैं ?
🤔  मानव का गरिमापूर्ण व्यवहार क्या हैं ?
😇  मेरा और ईश्वर का नाता क्या हैं ? क्यों हैं ?


इन प्रश्नों के तात्विक एवं सात्विक उत्तर दादाजी के स्वाध्याय सामीप्य में हैं।
परम पूज्य दादाजी के कार्य का साधन बनने का अवसर मुझे भी मिला हैं। उसका परितोष शायद ये आनंदविश्व सहेलगाह की विचार यात्रा हैं..! कई जीवन वैचारिक प्रबुद्ध हुए, कई जीवन को आशावंत दिशा मिली साथ ही निःस्वार्थ प्रेम की परीभषा भी मिली हैं।
 
 महान ईश्वर निर्मिति से ही नैमित्तिक मिलित्व को कायम करते हैं। संसार में हम लाखों- करोडों की तादात में हैं। कैसे हम किसको मिलेंगे ? क्यों मिलेंगे ? वो अदृश्य ईश्वर ही तय करते हैं। दादाजी ने विश्व को मनुष्यत्व के मिलित्व का ईश्वरीय सिद्धान्त समझाया और जीवन उत्सव निर्माण किया हैं। गीताकार की “क्षुद्रं ह्रदयदौर्बल्यं त्यक्त्वोत्तिष्ठ परंतप” की ह्रदय की तुच्छता को छोड़कर जीवन जीने की बात पू.दादाजी ने सर्व सामान्य के लिए सहज कर दी हैं। मनुष्य गौरव का इससे बेहतर मत कहीं नहीं होगा।
श्रद्धापूर्वक पू.दादाजी को कोटी-कोटी वंदन…!!



Your ThoughtBird Dr.Brijeshkumar Chandrarav 🫠 

Gandhinagar Gujarat
INDIA.
dr.brij59@gmail.com
09428312234

2 thoughts on “स्वाध्यायां न प्रमद:।।”

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